Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ प्या ---------- चतुष्कोटिक मित्यन्ये निकायापणं त्रिभिक्षामा सर्वत्र चतुराक्षेपः शुभस्य नरके त्रिधा॥ 51 / / यद्विरक्तःस्थिरो बालस्तत्र नोत्पय वेद्यकृत। नान्यवेद्यकृवार्यः कामाणे वा स्थिरोऽपि नः // 2 // द्वाविंशतिविध कामेष्वाधिपत्य न्तराभवः। "दृष्टधर्मफलं तच्च निकायो टेक एव सः॥ 53 // तीव केश प्रसादेन मातृघ्नेन च यत्कृतम् / गुणक्षेत्रे च नियत तत्पित्रो_तकं च यत् / / 54 // दृधर्मफलं कर्म क्षेत्राशय विशेषत:। तम्यत्यन्त वैराध्याट्विपाके नियतं हि तत् / / 59 // / ये निरोधारणामैत्री दानाई फलोत्थिता। लेषु कारणकार्यस्य फले सद्योऽनुभूयते // 6 // कुशालस्यावितर्कस्य कर्मणो वेदना मता| विपाकश्चत सिक्येव कायिक्येवा शुभस्य तु // 644 चित्तक्षेपो मनश्चित्ते स च कर्मविपाकजी भयो पद्यात वैषम्यौं कैश्चाकूक कामिनामाता वक दोष कमायोक्ति: शाम्य द्वेषज रागजे ) कृष्णशुकादिभेदेन पुन: कर्म चतुर्विधम्॥ 59 //
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