Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 35
________________ 4) [ "कामाप्तं कुत्रालारूपं मूलच्छेदोर्द्धजन्मता प्रतिपक्षोदया कष्टमरूपं तु बिहीयते nam नृणामसंवरो हित्वा षण्ड पर विधाकृतीन् / कुश्व संवरोऽप्येवं देवानां च नृणां त्रयः // 43 // 'कामरूपज देवानां ध्यानजोऽनाश्रवः पुनः) . ध्यानान्तरासंनिसत्ववज्यानामप्यरुपिणाम् // 44 // ओमासेमेतरत् कर्म कुरालाकुशलेतरत् / पुण्या पुण्यनिक ज्यं च सुखवेद्यापि च त्रयम् // 45 // 'कामधातौ शुभं कर्म पुलपुण्यमानिज्यमूर्द्धजम्। तदुमिषु यतः कर्म विपार्क प्रति नजति।।४६० सुखवेद्यं शुभं ध्यानात् आतृतीयादतः परम् / अदुःखा सुखवेद्यं तु दुःख वेद्यमिहाशुभम् // 4 // अधोऽपि मध्यमस्त्येके ध्यानान्तरविपाकत:। - आपूर्वाचरत: पाक: त्रयाणां ध्यते यत:॥६॥ F स्वभाव सम्पयोगाभ्यामा लम्याना विपाकत:) 'संमुखी भावना चेति पञ्चधा वेदनीयता // 49 // नियतानियतं तच्च नियतं विविध पूनः। -- दृरधर्मादिवयत्वात् पंचधा कर्म केचन // 50 //

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