Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ पैशुन्यं किष्टचित्तस्य वचनं परभेदने] .--- पारुष्यमपियं सर्वे किष्टसंभिन्नलापिता।।६।। अतोऽन्यत् किष्टमित्यन्ये लपनाणीवनात्यवत् / कुशास्त्रावच्चाभिध्या तु परस्वविषयस्पहा / / 990 [व्यापाद: सत्त्ववियो] नास्ति दृष्टि: शुभाशुभ। मिथ्यादृष्टिस्त्रयो हात्र पन्धान: सप्त कर्म च // 3 मूलच्छेद छेददृष्ट कामाप्तोत्पत्तिलाभिकः। फलहेतूपवादिन्या सर्वया कम क्रमशो नृषु // 79 // छिनत्ति स्त्री पुमान् दृष्टि चरितः सोऽसमन्वयः। सन्धिः काङ्गस्तिष्टेः स्यान्नेहानन्तर्यकारिणः॥०॥ युगपद् यावदा भिर शुभेः सह वर्तते / चेतना दशभिर्यावच्छभै नैकाष्टपञ्चभिः // 1 // संभिन्नालापपारुष्यव्यापादा नरके विधा) समन्वागमतोऽभिध्यामिथ्यादृष्टी कुरौ त्रयः / / 825 सप्तमः स्वयमप्यत्र कामेऽन्यत्र दशाहामाः। शुभास्त्रयस्तु सर्वत्र संमुखीभूत लाभतः // 3 //
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