Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 41
________________ 4 / 92-99 धर्माः शैादिका एकं फलं त्रीण्यपि च वयं। --- ताभ्यामन्यस्य शैक्षावया देदे पञ्च फलानि च // 9 // श्रीणि चत्वारि चैकस्य दृग्धेयस्य तदादयः। ते वे चत्वार्य त्रीणि भावनाहयकर्मणः॥९॥ अप्रहयस्य ते त्वकं हेचत्वारि यथाक्रमम् / अयोगविहितं किष्ट विधि भ्रष्टं च केचन // 9 // एक जन्माधिपत्येक मनेक परिपूरकम् / नाक्षेपिके समापत्ती अचिले प्राप्तयो न च // 15 // आनन्तर्याणि कर्मा नि तीवकेशोऽथ दु[HI तिः। 'कौरवासंतिसत्वाश्च मनमावरण त्रयम् // 16 // त्रिषु दीपेष्वानन्तर्य घण्टादीनां तु नेष्यते / अल्पोपकारालज्जित्वात् शेषे गतिषु पञ्चम् // 7 // संघभेद स्त्वसामग्रीस्वभावो विप्रयुक्तकः। -अकिष्याव्याकृतो धर्मः संबस्तेन समन्वितः // 9 // तदवयं मृषावादस्तेन भेला समन्धितः। - अवीचौ पच्यते कल्पमधिरधिका रुजः॥१९॥

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