Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ निरुदमाने कारित्रं द्वौ हेतू कुरुतस्त्रयः। I LVPER जायमाने ततोऽन्यौ तु प्रत्ययौ तट्रिपर्ययात् // 63 // 'चतुर्भिश्चित्तचैत्ता हि समापत्तिद्वयं त्रिभिः / द्वाभ्यामन्ये तु जायन्ते नेश्वरादेः कृमादिभिः // 64 // द्विधा भूतानि तदनुभौ तिकस्य तु पञ्चधा| त्रिधा भौतिक मन्योन्यं भूतानामेकधैव तत् // 65 // कुशालाकुशल कामे निवतानिवृतं मनः / रुपारूप्येष्वक कुशलान्यत्रानासवं द्विधा॥६६॥ कामे नब शुभाच्चिताञ्चित्तान्यराभ्य एव तत् / दाभ्योऽकुशलं तस्मा चत्वारि निवृतं तथा // 6 // पञ्चम्यो निवृतं तस्मान् सप्त चित्तान्यनन्तरम्। रुपे दोकं च शुमान्नवभ्यस्तदनन्तरम् // 6 // अध्यभ्यो निवृतं तस्मात् षटिभ्योऽनिवृतं पुन: तस्मात् प्रडेवमारुप्ये तस्य नीति: शुभा पुन:॥६॥ नव चिन्तानि तत्वदां निवानिवृतात् सप्त तत्तथा। चतुर्व्यः शैममस्मात्तु पञ्चाशैर्भ तु पञ्चकात् // 10 // तस्मा चत्वारि चित्तानि द्वादशैतानि विंशतिः। प्रायोगिकोपपत्याप्तं शर्म भित्या त्रिषु द्विधा // 1 //
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