Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ 3अन्तराभवसन्तत्या कुसिमति प्रदीपवत् / / 18 // थथा क्षेप क्रमादृद्धः सन्तान: केशकर्मभिः ___LvP वो गर्भावक्रान्तय स्तिसन्चक्रवर्तिस्वयंभुवाम्। ---- कर्मतानो भयेषां वा विषदत्वाद्य धाक्रमम् // 1 // नात्मारित स्कन्धमात्रं तु केशकर्माभिसंस्कृतः / परलोकं पूनर्यातीत्यनादि भवचक्रकम् // 10 // स प्रतीत्यसमुत्पादो द्वादशास्त्रिकाण्डकः। पूर्वापरान्तयोद्धेद्वे मध्येऽौ परिपूरिणः // 30 // पूर्व केशदशाऽविद्या संस्कारा: पूर्व कर्मणः | सन्धिस्कन्धास्तु विज्ञानं नामरुपमतः परम् / / 25 // पाक घडायतनोत्पादात्तत्पूर्व त्रिकसँगमात् / स्पर्धाः प्राक सुखदुःखादि कारणज्ञानशक्तित: // 23 // वित्तिः पाडै युनात्तृष्णा भोगमैथुनगिणः। उपादानं तु भोगानां प्राप्तये परिधावत: // 23 // स [भविष्य] वफलं कुरुते कर्म तद्वः / प्रतिसन्धिः पूनर्जातिजरामरण भाविदः // 24 // आवस्थिक: किलेोऽयं प्राधान्याचा कीर्तनम् / पूर्वापरान्त मध्येषु संमोहविनिवृत्तये // 25 // केशा स्त्रीगि द्वयं कर्म सप्त वस्तु फलं तथा फलहेत्वभिसंक्षेपो योर्मध्यानुमानतः // 26 // trpa
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