Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 30
________________ कर्मजं लोकवैचित्र्यं चेतना तत्कृतं च तत् / चेतना मानसं कर्म तज्जं बाक्कायकर्मणी // 9 // ने तु विज्ञात्यविज्ञप्ती काय विज्ञप्ति रिष्यते। संस्थानं च गतिर्यस्मात् संस्कृतं आणिक व्ययात॥३) न कस्यचिद हेतु: स्याद्धवः स्याच विनाशक / विशाह्यं स्यान्न चाणौ तहावितप्तिस्तु वाधनिः॥३॥ त्रिविधामल रूपोक्तिवृद्ध कुर्वत्पधादिभिः। क्षणादूर्द्धमवितप्तिः कामातातीत भूत जाता स्वानि भूतान्युपाराय कायवा कर्म सावमा अनाश्रयं यत्र जातोऽविततिरनुपात्तिका // 5 //

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