Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 28
________________ Sal संवर्तकल्यो नारकासंभवाद्राजन अयः। ---- विवर्तकल्प प्राण्वायोर्यावन्नारक सम्भव // 90 // अन्त8 कल्पोऽ मितायावद्दशवर्षायुषस्तत:। उत्की अपकर्षाच कल्पा अष्टदशापरे // 9 // उत्कर्ष एकस्तेऽशीतिसहसा द्यावदायुषः। इति लोको विवृत्तो ऽयं कल्पां तिष्ठतिम विंशतिम्। विवर्ततेऽथ संवृत्त आस्ते संवर्तते समम् / ते अशीतिर्महाकल्प स्तदसंख्य त्रयो ट्वम् / / 13 // बुद्धत्वमपकर्षे तु शाताधावत्तदुद्भवः। द्वयोः पत्येकबुद्धार्ना सहः कल्पशतान्चयः // 9 // चक्रवर्ति समुत्पत्ति धोऽसीति सहसकात / सुवर्णरुप्यतामायश्चकिणस्ते ऽधर क्रमात्॥९५॥ एक वित्रि चतुया न च हौ सह बुद्धवत् / पत्यु धान-सहान रवधान कलहा स्त्रजितो ऽवधाः) देशस्थोत्तमपूर्णत्वैलाणातिशयो मुनेः। " प्रागा सन् सपिवत्सत्वा रसरागाचतः शनैः / / आल स्यात सन्निधि का साग्रह क्षेत्रपो भृतः। नतः कर्म पथापिक्या पहासे दशायुषः॥८॥ संग्रहं . LPमात्रा म!

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