Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay
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________________ स्थामा स्थानाधो धावन्ताबदूध ततस्ततः।----- नो दर्शनमस्त्येषामन्या पाश्रयात् // 12 // चन्द्वीपकचन्द्रार्क मेरुकामधिोकसः। बाह्मलोक सहसंच साहसाचूडिको मतः / / 3 / / तत्सहसं द्विसाहसो लोकधातुस्त मध्यमः। तत्सहसं बिसाहस समसंवर्त संभवः / / 14 // जाम्बूद्दीपा: पमाणेन चतुः सार्ध विहस्तकाः। विगुणोत्तर वृद्ध्या तु पूर्वगोदोत्तरायाः // 15 // पावशा तनुबित् साई को शो दिवौकसाम | का भिनां रुपिणां त्यादौ योजनार्द्ध ततः परम् || 265 साई वृद्धि कंय तु परीता भेभ्य आश्रयः द्विगुण द्विगुणो हित्वाऽनभके भ्यस्त्रियोजनम् // 10 // सहसमायुः कुरुषु द्वयोरा वर्जितम | इहानियतमन्येतु दशाब्दानादितोऽमितम् // 8 // नृणां वानि पञ्चाशदहोरात्रो दिवो कमाम् / कामे ऽ धराणां तेनायु पञ्च वर्ष शतानि तु // 19 // द्विगुणोत्तरमूर्धानामुभयं रुपिणां पुन:) नास्त्यहोरात्रमायुस्तु कल्पित कल्पैः स्वाश्रयसम्मितः॥
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