Book Title: Abhidharmkoshkarika
Author(s): Jambuvijay
Publisher: Jambuvijay

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Page 21
________________ के शात्केशः क्रिया चैन को ततो वस्तु ततः पुजन वस्तु क्लेशाञ्च जायन्ते भवाङ्गानामयं नयः // 20 // हेतुस्त्र समूत्पादः समुत्पन्नं फलं मतम् / विद्याविपक्षो धर्मोऽन्योऽविधाऽमित्रानतादिवत्॥२८॥ संयोजनादिवचनात कुपज्ञा चन्न दर्शनात / दृष्टस्तत्सम्पयुक्तत्वात प्रतापकेशदर्शनात् / / 29 // नाम त्वपिण: स्कन्धा स्पर्शा: षट् सन्निपातजा। पञ्च प्रतिघ संस्पर्श षष्ठोऽधिवचनावयः // 30 // विद्याविद्येतर स्पर्शा अमलकिशोषिताः। व्यापादानुनय स्पर्टी सुखे वेद्यादय स्त्रयः // 31 // तनाः षड् वेदनाः पञ्च कायिकी चेतसी पराः . Lve पुनश्चाादशविधा सा मनोपविचारतः / / 32 // कामे सालम्बनाः सर्वे रुपी द्वादश गोचरः। त्रयाणाम्त्तरी ध्यान दये द्वादश कामगाः // 33 // स्वोऽशलम्बनमारप्यो योनिद्वये तु षट् / कामा: षण्णां चतुर्गा स्व एकस्यालम्बनं परः॥३४॥ चत्वारोऽरुपि सामन्ते रूपगा एक उर्ध्वगः। ।एको मोले स्वविषयः सवेशदश साश्रवाः // 35 // Typ प्यं

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