________________ निक्षेपवाद / 129 3. द्रव्यनिक्षेप–पदार्थ का भूत एवं भावी पर्यायाश्रित व्यवहार तथा अनुपयोग अवस्थागत व्यवहार द्रव्य निक्षेप है-'भूतभाविकारणस्य अनुपयोगो वा द्रव्यम्' अतीत-अवस्था, भविष्यत्-अवस्था एवं अनुपयोग दशा-ये तीनों विवक्षित क्रिया में परिणत नहीं होते हैं, इसलिए इन्हें द्रव्य निक्षेप कहा जाता है। ___ जो व्यक्ति पहले उपाध्याय रह चुका है अथवा भविष्य में उपाध्याय बननेवाला है, वह द्रव्य उपाध्याय है / अनुपयोग दशा में की जानेवाली क्रिया भी द्रव्यक्रिया है। द्रव्य शब्द का प्रयोग अप्रधान अर्थ में भी होता है, जैसे-आचार गुण शून्य होने से अंगारमर्दक को द्रव्याचार्य कहा जाता है। ___ अनुयोगद्वार में द्रव्य निक्षेप के दो प्रकार बताए गये हैं-आगमतः एवं नो आगमतः। (1) आगमतः द्रव्य निक्षेप–'जीवादिपदार्थज्ञोऽपि तत्राऽनुपयुक्तः' ।कोई व्यक्ति जीव विषयक अथवा अन्य किसी वस्तु का ज्ञाता है किन्तु वर्तमान में उस उपयोग से रहित है उसे आगमत: द्रव्य निक्षेप कहा जाता है। .. (2) नोआगमतः द्रव्यनिक्षेप-आगम द्रव्य की आत्मा का उसके शरीर में आरोप करके उस जीव के शरीर को ही जाता कहना नोआगमतः द्रव्यनिक्षेप है। आगमद्रव्यनिक्षेप में उपयोग रूप ज्ञान नहीं होता किन्तु लब्धि रूप में ज्ञान का अस्तित्व रहता है किन्तु नो आगमतः में लब्धि एवं उपयोग उभय रूप से ही ज्ञान का अभाव रहता है। नोआगमतः द्रव्यनिक्षेप मुख्य रूप से तीन प्रकार का है—(१) ज्ञशरीर, (2) भव्यशरीर एवं (3) तद्व्यतिरिक्त / इनके भेद-प्रभेद अनेक हैं। . (1) ज्ञशरीर-जिस शरीर में रहकर आत्मा जानता देखता था वह ज्ञशरीर है। जैसे—आवश्यक सूत्र के ज्ञाता की मृत्यु हो जाने के बाद भी पड़े हुए शरीर को देखकर कहना यह आवश्यक सूत्र का ज्ञाता है। (2) भव्यशरीर-जिस शरीर में रहकर आत्मा भविष्य में ज्ञान करनेवाली होगी वह भव्य शरीर है। जैसे-जन्मजात बच्चे को कहना यह आवश्यक सूत्र का ज्ञाता (3) तद्व्यतिरिक्त-वस्तु की उपकारक सामग्री में वस्तुवाची शब्द का व्यवहार किया जाता है, यह तद्व्यतिरिक्त है / जैसे-अध्यापन के समय होनेवाली हस्त संकेत आदि क्रिया को अध्यापक कहना / लौकिक, प्रावचनिक एवं लोकोत्तर के भेद से यह तीन प्रकार का है।