Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 363
________________ 362 / आती-दृष्टि वे मौलिक मनोवृत्तियां सम्पूर्ण प्राणी जगत् में विद्यमान है / ये जन्मजात होती है। प्राणी इन्हें साथ में लेकर जन्म लेता है / जन्म के बाद में नहीं सीखता है / मूलप्रवृत्तियां सार्वलौकिक होती हैं। मूलप्रवृत्ति प्रकृति द्वारा दी गई प्रेरक शक्ति है। प्राणी जीवन की प्रत्येक क्रिया इसी मूलप्रवृत्ति के द्वारा संचालित होती है। जैन-दर्शन में प्राप्त दस संज्ञाओं का विवेचन आज के मनोविज्ञान के सन्दर्भ में महत्त्वपूर्ण तुलनात्मक बिन्दु है। भगवान् महावीर ने आहार, भय, मैथुन आदि दस संज्ञाओं का उल्लेख भगवती आदि अनेक आगम में किया है। हमारे जितने आचरण हैं उनके पीछे हमारी दस प्रकार की चेतना काम करती हैं। संज्ञा का अर्थ है एक प्रकार की चित्तवृत्ति / आचार्य श्री महाप्रज्ञजी के शब्दों में जिसमें चेतन और अचेतन, कॉन्शियस माइन्ड और सब-कॉन्शियस माइन्ड दोनों का योग होता है उसे संज्ञा कहते आज के मनोवैज्ञानिक जिस बात को आज कह रहे हैं उसका उल्लेख ढाई हजार वर्ष के प्राचीन आगम साहित्य में उपलब्ध है। ये दस संज्ञाएं एकेन्द्रिय से लेकर पञ्चेन्द्रिय तक सम्पूर्ण प्राणी जगत में प्राप्त होती है / जीवन संचालन की प्रेरक शक्ति ये दस संज्ञाएं ही हैं। ____ मनोविज्ञान के क्षेत्र में विभिन्न मनोवैज्ञानिकों के अलग-अलग विचार हमें प्राप्त होते हैं। फ्राइड के अनुसार ( libido ) ही वास्तव में एक मूलप्रवृत्ति है / उसके द्वारा ही प्राणी का सम्पूर्ण जीवन व्यवहार संचालित होता है 'कर्कपैट्रिक' इन मूल-प्रवृत्तियों को पाँच भागों में विभक्त करते हैं 1. आत्मरक्षा की शक्ति, 2. सन्तानोत्पत्ति की शक्ति, 3. आदर्श जीवन व्यतीत करने की प्रवृत्ति / 4. समायोजन की प्रवृत्ति, वुडवर्थ ने मूल प्रवृत्तियों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया है। 1. दैहिक आवश्यकताओं से सम्बन्धित क्रियाएं-जैसे निद्रा, क्षुधा, प्यास, थकावट आदि। 2. अन्य व्यक्तियों से सम्बन्धित—पुत्र कामना, काम तृप्ति, 3. खेल सम्बन्धी / इन तीन भागों में मूल-प्रवृत्तियों को विभाजित किया है। . प्रसिद्ध मनोविज्ञानवेत्ता मैक्डूगल का मूल-प्रवृत्तियों सम्बन्धी विभाग दस संज्ञाओं

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