Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan
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________________ 376 / आर्हती-दृष्टि 6. प्रत्यक्षागमाश्रितमनुमानं साऽन्वीक्षा / प्रत्यक्षागमाभ्यामीक्षितस्यान्वीक्षणमन्वीक्षा तया प्रवर्तत इत्यान्वीक्षिकी-न्यायविद्या-न्यायशास्त्रम् वात्स्यायन भाष्य 1/1/1 7. 'तत्पूर्वकम्' न्यायसूत्र 1/1/5 8. साध्यविनाभुवो लिङ्गात् साध्यनिश्चायकं स्मृतम् / अनुमान तदभ्रान्तं प्रमाणत्वात् सपक्षवत् // न्यायावतार श्लोक 5 9. प्रशस्तपादभाष्य सूत्र / 10. न्यायकिरणावली। 11. लिङ्गात्साध्याविनाभावाभिनिबोधैकलक्षणात् / लिङ्गिधीरनुमानं तत्फलं हानादिबुद्धयः // लघीयस्त्रयी कारिका. 12 12. साधनात्साध्यविज्ञानमनुमानम्। प्रमाण मीमांसा 1/2/7 13. 'अनुमानं लिङ्गादर्थदर्शनम्'. जैन तर्कशास्त्र में अनुमान विचार पृ. 258 14. तत् द्विधा स्वार्थ परार्थ च। . प्रमाण मीमांसा 1/2/8 . 15. स्वव्यामोहनिवर्तनक्षम स्वार्थम्, परमोहनिवर्तनक्षम परार्थम्। प्रमाण मीमांसा 1/2/8 16. जैन न्याय का विकास पृ. 104 17. सम्बद्धं वर्तमान च गृह्यते चक्षुरादिना। -- श्लोकवार्तिक सूत्र 4 श्लोक 84 18. जिणवयणं सिद्धं चेव भण्णए कत्थई उदाहरणं, . आसज्ज उ सोयारं हेऊऽवि कहिंचि भण्णेज्जा। दशवैकालिक नियुक्ति गाथा 49 19. कत्थइ पंचावयवं दसहा वा सव्वहा न पडिसिद्धं / न च पुण सव्वं भण्णइ हंदी सविआरमक्खायं // दशवैकालिक नियुक्ति गाथा 50 20. जैन न्याय का विकास पृ. 115 21. जैन न्याय का विकास पृ. 116 22. वही. पृ. 119

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