Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 375
________________ 374 / आर्हती-दृष्टि . व्याप्ति कोई पारमार्थिक प्रत्यक्ष रूप केवलज्ञान नहीं है, जहां विसंवादन हो ही. नहीं अतः अनुमान को स्वीकार करनेवाले भी उसकी सामर्थ्य एवं योग्यता से परिचित हैं। अनुमान अत्यन्त व्यापक है। उससे यथार्थबोध होता है। अतः प्रमाण रूप से इसकी स्वीकृति अनिवार्य है। अनुमान ज्ञान सम्भावना भी नहीं है। सम्भावना से कदाचित् कोई प्रवृत्ति हो सकती है किन्तु वह समस्त कार्य-कलापों की आधार नहीं बन सकती / सम्भावना एक प्रकार का संशय ज्ञान है जबकि अनुमान निर्णयात्मक होता है। निश्चित ज्ञान संशय का विरोधी होता है / उदयनाचार्य ने इस प्रसंग पर विस्तार से चर्चा की है / 20 ____ अनुमान में साध्य एवं साधन के मध्य अनौपाधिक सम्बन्ध होना परमावश्यक है किन्तु चार्वाक् का मन्तव्य है कि सर्वथा उपाधिशून्य हेतुं मिलना दुष्कर है क्योंकि देशान्तर एवं कालान्तर में उसके उपाधियुक्त होने की सम्भावना सर्वदा बनी रहती है। आचार्य उदयन ने इसी हेतु से अनुमान को प्रस्थापित करते हुए संदेह रहने और न रहने दोनों अवस्थाओं में अनुमान यथार्थरूप से सम्पन्न हो सकता है। ___चार्वाक् ने कालान्तर तथा देशान्तर में उपाधि की सम्भावना से अनुमान दूषित बताया, यह तर्कसंगत नहीं है क्योंकि कालान्तर एवं देशान्तर प्रत्यक्षगम्य नहीं होने से उनके सद्भाव की सिद्धि नहीं होती, यदि दोनों का सद्भाव माना जाए तो उनके होने . का अनुमान किया जा सकता है। अतः चार्वाकों का सन्देह-उपाधि का होना अनुमान की यथार्थता की पूर्व-कल्पना है। __अनुमान को प्रमाण माननेवालों के सैद्धान्तिक निष्कर्ष भिन्न-भिन्न हैं, यह यथार्थ है। अविनाभाव के नियम-निर्धारण के आधार पर विषय में सबकी सम्मति होने पर भी उनके फलित समान नहीं है / इसका कारण यही प्रतीत होता है कि सूक्ष्म सत्यों के : विषय में सबके सिद्धान्त समान नहीं हैं / यह सैद्धान्तिक असमानता ही अविनाभाव . के नियमों में विभिन्नता लाती है। ___अनेकान्त दृष्टि से इस जिज्ञासा के समाधान में चिन्तन करने पर कुछ नए तथ्य सामने आते हैं। वस्तु अनन्त धर्मान्तक है। उसकी अवगति प्रमाण एवं नय के द्वारा होती है। प्रमाण से वस्तु का अखण्ड ज्ञान हो सकता है / वैसा प्रमाण सर्वज्ञ के हो सकता है। विभिन्न दार्शनिकों के निष्कर्ष की भिन्नता का आधार नय की प्रक्रिया है, जिसकी विचारधारा संग्रह नय के आधार पर अविनाभाव को ग्रहण करती है, उसे सम्पूर्ण विश्व में एकत्व दृष्टिगोचर होता है। जो विचारधारा पर्यायार्थिक का आश्रयण लेकर व्याप्ति को ग्रहण करती है।

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