Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 360
________________ शरीर में अतीन्द्रियज्ञान के स्थान / 359 क्षेत्रों की सक्रियता सबके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। . इस दृष्टि से यह विषय बहुत मननीय है। अपेक्षा है, इस विषय पर आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की अवधारणाओं के साथ विमर्श किया जाए जिससे ज्ञान के गूढ रहस्यों का व्यवहार-जगत् में सलक्ष्य प्रयोग हो सके। ___ संदर्भ 1. तत्त्वार्थ सू. 1/9 / / 2. वही. 1/11 / 3. साहाय्यापेक्षं परोक्षम् न्याय कर्णिका 3/1 / 4. तत्त्वार्थ सू.१/१२। 5. न्याय कर्णिका 2/4 / . 6. यौव यो दृष्ट गुणः स तत्र। अन्ययोगव्यवच्छेदिका गा. 9 7. नन्दी सू. 10-11 / 8. नन्दी चूं., पृ. 16. 9. वही. पृ.१६. 10. नन्दी सू. 16. .. 11. जस्स ओहिणाणस्स जीवसरीरस्स एगदेसो करण होदि तमोहिणाणमेगक्खेत्तं णाम। जमोहिणाणं पडिणियदखेत्तवज्जियसरीरसव्वावयवेसु वट्टदि तमणेयक्खेत्तं णाम। षटखण्डागम, पुस्तक 13 पृ., 294 / 12. अप्रमादाध्यवसायसंधानभूतं शरीरवर्तिकरणं चैतन्यकेन्द्रं चक्रमिति यावत् / - आचारांग भाष्यम् सू. 5/20 / . 13. खेत्तदो ताव अणेयसंठाणसंठिदा। सिरिवच्छ-कलस-संख-सोत्थियणंदावत्तादीणि संठाणाणि णादव्वाणि भवंति // षटखण्डागम, पु. 13 पृ. , 296 / 14. विभंगनाणे अणेगवि... नाणासंठाणसंठए पण्णत्ते। भगवई 8/103 15. अवधिज्ञानप्रसंगे करणपदस्यार्थों भवति शरीरावयवा, शरीरैकदेशो वा यस्माद् अवधिज्ञानी विषयं जानाति / आचारांग भाष्यम्, पृ. 247

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