Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 359
________________ 358 / आर्हती-दृष्टि भुवनज्ञान होता है। नाभिचक्र में संयम करने से शारीरिक संरचना का ज्ञान हो जात है। ऐसे अनेक वर्णन वहां प्राप्त हैं। कुछ परामनोवैज्ञानिकों के अनुसार मनुष्य का मस्तिष्क रहस्यों के तंतुजाल से बना एक करिश्मा है / वह अपनी एकाग्रता का विकास कर ग्रहण और प्रेषण की कई ऐसी क्षमताओं को उजागर कर सकता है जो इन्द्रिय-बोध की मर्यादा में नहीं आती। कुछ परामनोवैज्ञानिकों की अवधारणा है ।हमारे शरीर से उत्सर्जित एवं विकीरित बायोप्लाज्मा एनर्जी या साइकोट्रोनिक एनर्जी अतीन्द्रिय शक्तियों का आधार है / ध्यान, साधना आदि के द्वारा इनकी लयबद्धता को विकसित कर विशिष्ट-बोध क्षमता का विकास किया जा सकता है। __ कुछ विद्वानों के अनुसार अतिन्द्रियज्ञान का आधार मनुष्य की छठी इन्द्रिय है। यह इन्द्रिय कोशिकाओं के एक-एक छोटे समूह के रूप में मस्तिष्क के नीचे रहती है, जो हर व्यक्ति में समान रूप से सक्रिय नहीं होती। ध्यान, साधना, अभ्यास, मनन आदि के द्वारा उत्पन्न आध्यात्मिक एकाग्रता इसकी सक्रियता को वृद्धिंगत करती है। कुछ विचारकों के अनुसार हमारे मनः संस्थान का केवल 9% भाग ही जान जा सका है। शेष 91% भाग जिसे डार्क एरिया कहा जाता है, वहीं अतीन्द्रिय क्षमताओं का निवास स्थान है / तालुतल से जीभ का स्पर्श कर मस्तिष्क की प्रसुप्त एवं अविज्ञात शक्तियों को जागृत एवं प्रदीप्त किया जा सकता है / वैज्ञानिक दृष्टि से इसे पिच्युटरी और पिनीयल का स्थान कहा जा सकता है। शरीरविज्ञान के अनुसार केन्द्रिय नाडीतंत्र का भाग अतीन्द्रियज्ञान की क्षमता का धारक हो सकता है। नाडीतन्त्र का वह भाग ग्रन्थियों का निवास है, अतीन्द्रियज्ञान की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि पूरे शरीर में चैतन्यकेन्द्र अवस्थित हैं। साधना के तारतम्य के अनुसार जो चैतन्यकेन्द्र जागृत होता है उसी में से अतीन्द्रियज्ञान की रश्मियां बाहर निकलने लगती हैं / यदि पूरे शरीर को जागृत कर लिया जाता है तो पूरे शरीर में से अतीन्द्रिय ज्ञान की रश्मियां निकलने लगती हैं / 25 कभी-कभी बिना साधना के ही चोट आदि लगने से भी शरीर का वह प्रदेश अतीन्द्रिय चेतना का वाहक बन जाता है। चैतन्य केन्द्र का विषय-साधना की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। जैन-दर्शन के अनुसार आत्मा पूरे शरीर में व्याप्त होती है किन्तु उसके प्रदेश या चैतन्य की सघनता एक जैसी नहीं होती। शरीर के कुछ भागों में चैतन्य सघन होता है और कुछ भागों में विरल / अतीन्द्रियज्ञान शक्ति विकास और आनन्द की अनुभूति के लिए उन सघन

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