________________ विभिन्न भारतीय दर्शनों में आश्रव / 213 वेदान्त दर्शन . . वेदान्त के अनुसार अविद्या संसार का कारण है / ब्रह्म नित्य, शुद्ध, चैतन्य स्वभाव एवं अखण्ड आनन्द स्वरूप है। किन्तु अविद्या के कारण ब्रह्म की प्राप्ति नहीं होती है। इसी के कारण जीव को अपने स्वरूप की विस्मृति रहती है। अपने स्वभाव से भिन्न विभाव में आसक्ति होती है। अविद्या के कारण ही जीव अपने ब्रह्म स्वरूप से भिन्न रहता है / इन्द्रियां बहिर्मुख हैं,वे अन्तरात्मा का दर्शन नहीं कर सकतीं / कठोपनिषद् (2/1/1) में कहा है कि पराञ्चि खानि व्यतृणत् स्वयंभूस् तस्मात् पराड्यश्यन्ति नान्तरात्मन् // वेदान्त दर्शन के अनुसार ज्ञान से मुक्ति होती है और अज्ञान/अविद्या से बन्ध होता है—'ज्ञानान्मुक्तिः बन्धो विपर्ययात्' / जीव अनादि माया से सुप्त है / उस माया/ . अविद्या की निवृत्ति से ही वह जागृत होता है और जीव का जागृत होना ही मोक्ष है। अविद्यानिवृत्तिरेव मोक्षः / सम्यक् ज्ञान ही मोक्ष का उपाय है / मोक्ष में अद्वैत अवभासित होता है अनादिमायया सुप्तो यदा जीवः प्रबुध्यते। अजं अनिद्रं अस्वनं अद्वैतं बुध्यते तदा / / उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि वेदान्त के अनुसार आश्रव अर्थात् कर्मबन्ध का हेतु अविद्या ही है। सांख्य एवं योग दर्शन ____सांख्य दर्शन के अनुसार यह सांसारिक जीवन आध्यात्मिक, आधिभौतिक एवं अधिदैविक इन त्रिविध दुःखों से परिपूर्ण है / दुःख का मूल कारण अविद्या अर्थात् मिथ्याज्ञान ही है। प्रकृति एवं पुरुष में एकत्व की अनुभूति अविद्या के कारण होती है। अविद्या विवेक ख्याति की अवरोधक है / सांख्य दर्शन के अनुसार बन्ध विपर्यय पर आधारित है और विपर्यय ही मिथ्याज्ञान है। अनात्मा में आत्मबुद्धि होना ही ' मिथ्याज्ञान है। ___ योग दर्शन के अनुसार क्लेश ही बन्ध के कारण हैं / क्लेश पांच माने गये हैं"अविद्याऽस्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः पञ्च क्लेशाः' इन सब क्लेशों के मूल में अविद्या है-अविद्याभूमिमुत्तरेषाम् / सांख्य जिसको विपर्यय कहता है योग में उसे क्लेश कहा