Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 340
________________ कालिक एवं उत्कालिक सूत्र प्राचीन जैन-परम्परा में श्रुतज्ञान का सम्बन्ध मात्र आगमों से था। यद्यपि उसके स्वरूप में बाद में परिवर्तन होता आया है परन्तु प्राचीन परम्परा में जिन प्रवचन को ही श्रुतज्ञान कहा जाता था। तत्त्वार्थ भाष्य में प्रदत्त उसके पर्यायवाची शब्दों से इसका स्पष्ट अवबोध हो जाता है। श्रुतमाप्तवचनमागम उपदेश ऐतिह्याम्नायः प्रवचनं जिनवचनमित्यनान्तरम्। . ___ नन्दीसूत्र में श्रुतज्ञान को चतुर्दश भेदवाला बतलाया है / संक्षेप में उसके दो भेद भी किए हैं—अंग-प्रविष्ट एवं अंग-बाह्य (अनंग प्रविष्ट / प्रश्न उपस्थित होता है, जब ये दो भेद चौदह भेदों के अन्तर्गत आ गए थे फिर इनका पृथक् व्याख्यान क्यों किया गया? टीकाकारों ने समाधान प्रस्तुत करते हुए कहा कि उन चौदह भेदों का भी समावेश इन दो भेदों में हो जाता है। अतः अर्हत् प्रणीत होने से इनका वैशिष्ट्य स्थापित करने के लिए ही इनका पथक् व्याख्यान किया गया है। भगवान् महावीर द्वारा अर्थरूप में कहे गए तथा गणधरों एवं स्थविरों द्वारा सूत्ररूप में गूंथे गए शास्त्रों को आगम कहते हैं। . __ ये आगम दो भागों में विभक्त हैं—अंग-प्रविष्ट एवं अनंग-प्रविष्ट / अंग-प्रविष्ट आगम द्वादश भेदों में विभक्त है / नन्दी में श्रुत-पुरुष की कल्पना की गई है / अंग-प्रविष्ट आगमों को श्रुत-पुरुष के अवयव के रूप में स्वीकारा गया है। दो पैर, दो जंघा, एक पेट एक पीठ, दो बाह, दो उरु, एक ग्रीवा तथा एक सिर-ये बारह श्रुत-पुरुष के अंग है। अंग-बाह्य आगम भिन्न-भिन्न स्थविरों द्वारा रचे गए हैं। ये भी बारह प्रकार के है किन्तु ये श्रुत-पुरुष के अवयव नहीं है / द्वादशांग ही श्रुत पुरुष के अवयव है। ___ अंग-प्रविष्ट एवं अंग-बाह्य आगमों का विभाजन कालिक एवं उत्कालिक इन दो भेदों में किया गया है। कालिक-सत्र उन्हें कहा जाता है जिनका अध्ययन नियतकाल में किया जाता है अर्थात् उनके स्वाध्याय का समय नियत होता है। जो सूत्र दिवस और रात्रि के प्रथम एवं अन्तिम दो प्रहरों में पढ़े जाते हैं वे कालिक कहलाते हैं तथा जिनकी काल-बेला का कोई नियम नहीं होता वे उत्कालिक सूत्र है। जिन सूत्रों का अध्ययन दीक्षा-पर्याय के आधार पर किया जाता है वे भी कालिकसूत्र कहलाते हैं। (व्यवहारसूत्र, 298)

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