Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 347
________________ 346 / आर्हती-दृष्टि कारण प्रमाण हैं / अन्य जैन दार्शनिकों की तरह स्मृति को प्रमाण मानने वाले अकलेक एवं माणिक्यनन्दी के अपूर्व एवं अनधिगत इस पद का सामञ्जस्य उपर्युक्त व्याख्या से ही हो सकता है। सर्वथा अगृहीतग्राही को ही प्रमाण मानने से स्मृति को वे प्रमाण कैसे कह सकते थे। आचार्य प्रभाचन्द्र ने कंथचिद् अपूर्वार्थग्राही ज्ञान के प्रामाण्य का समर्थन किया तथा सर्वथा अपूर्वार्थग्राही का निराकरण किया है। यदि अपूर्वार्थ का ज्ञान प्रमाण है तो तैमिरिक रोगी को आकाश में एक के दो चन्द्रमा दिखाई देते हैं जो कभी किसी को दिखाई नहीं देते। अतः वह भी प्रमाण हो जाएगा अतएव कथंचिद् अपूर्वार्थग्राही को ही प्रमाण मानना चाहिए। दिगम्बर आचार्य विद्यानन्द ने गृहीतग्राही एवं अगृहीतग्राही इस प्रश्न को उपस्थित करना भी उचित नहीं समझा उन्होंने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में कहा- ... गृहीतमगृहीतं वा स्वार्थ यदि व्यवस्यति / तन्न लोके न शास्त्रेषु, विजहाति प्रमाणताम् / / ज्ञान चाहे गृहीतग्राही हो अथवा अगृहीतग्राही यदि वह स्वयं का एवं पदार्थ का निश्चय कारक है तो उसकी प्रामाणिकता में किसी भी प्रकार की बाधा नहीं है। . उन्होंने स्वार्थव्यवसायात्मक ज्ञान के अतिरिक्त अन्य विशेषणों के औचित्य को भी स्वीकार नहीं किया तत्त्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं मानमितीयता। लक्षणेन गतार्थत्वात्, व्यर्थमन्यद् विशेषणम् / / श्वेताम्बर परंपरा ने एक स्वर से धारावाहिक ज्ञान के प्रामाण्य का समर्थन किया। धारावाहिक ज्ञान को अप्रमाण कहने वालों के साथ उनका विरोध था। किसी भी श्वेताम्बर दार्शनिक, तार्किक ने अपने प्रमाण लक्षण में अपूर्व तथा अनधिगत इस पद को स्वीकार नहीं किया। उनके विचारानुसार गृहीतग्राहित्व प्रामाण्य का विघातक नहीं है, अतएव उनके मत से धारावाहिक ज्ञान में विषय-भेद से अथवा प्रमाता-भेद की अपेक्षा से प्रमाण्य-अप्रामाण्य मानने की आवश्यकता ही नहीं है। ___ आचार्य हेमचन्द्र ने बड़ी ही सूक्ष्मता एवं सरलता के साथ अपनी प्रसन्न एवं सयुक्तिक शैली के द्वारा अगृहीतग्राही को ही प्रमाण मानने वालों का निराकरण किया। उन्होंने गृहीतग्राही एवं ग्रहीष्यमाणग्राही दोनों को ही प्रमाण माना है। उनका कहना है कि द्रव्य की अपेक्षा गृहीतग्राहित्व के प्रामाण्य का निषेध हैं अथवा पर्याय

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