Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan

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Page 339
________________ 338 / आहती-दृष्टि श्रुतनिश्रित-अश्रुतनिश्रित की परिभाषा 1. श्रुतनिश्रित-जो विषय पहले श्रुतशास्त्र के द्वारा ज्ञात हो किन्तु वर्तमान __ में श्रुत का आलम्बन लिए बिना ही उसे जानना श्रुत-निश्रित आभिनिबोधिक ज्ञान है। तत्र शाखापरिकर्मितमतेरुत्पादकाले शास्त्रार्थपर्यालोचनमनपेक्ष्यैव यदुपजायते मतिज्ञानं तत् श्रुतनिश्रितम्-अवग्रहादि व्यवहारकाल से पूर्व जिसकी मतिश्रुत परिकर्मित (वासित) है किन्तु व्यवहारकाल में श्रुतनिरपेक्ष जो ज्ञान उत्पन्न होता है, वह श्रुतनिश्रित है। विशेषावश्यक में कहा गया है पुदि सुअपरिकम्मियमइस्स णं संपयं सुआईअं तं णिस्सियमियरं पुण अणिस्सियं मइ चउक्तं। . __ जैन तत्त्व विद्या में आचार्य श्री तुलसी ने कहा है -जो बुद्धि अतीत में शास्त्र पर्यालोचन से परिष्कृत हो गई हो, पर वर्तमान में शास्त्रपर्यालोचन के बिना उत्पन्न हो वह बुद्धि श्रुतनिश्रित मति कहलाती है। 2 अश्रुतनिश्रित-शास्त्रों के अभ्यास बिना ही विशिष्ट क्षयोपशम भाव से यथार्थ अवबोध करानेवाली बुद्धि अश्रुतनिश्रित मति कहलाती है। जो बुद्धि पूर्व में श्रुतपरिकर्मित नहीं होती स्वतः ही विशिष्ट प्रकार के क्षयोपशम से प्राप्त होती है वह अश्रुत-निश्रित है। औत्पत्तिकी आदि चार बुद्धियां अश्रुत-निश्रित मति के प्रकार हैं। ____घट सामने आया और जलादि आहरण-क्रिया समर्थ मृन्मयादि घट को जान लिया। यहां ज्ञानकाल में श्रुत का सहारा नहीं लिया गया। इसलिए यह श्रुत का अनुसारी नहीं है किन्तु इससे पूर्व घट शब्द का वाच्यार्थ यह पदार्थ होता है / यह जाना हुआ था, इसलिए वह श्रुत-निश्रित है। ____ जो पूर्व में न तो दृष्ट है, न श्रुत है किन्तु विशेष क्षयोपशम से ज्ञान प्राप्ति होती है वह अश्रुत-निश्रित मति है। जैसे गैलीलियो से पहले कोई जानता ही नहीं था कि पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाती है किन्तु यह ज्ञान था कि सूर्य चक्कर लगाता है। उसने कहा सूर्य नहीं अपितु पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ चक्कर लगाती है। यह अश्रुत-निश्रित मतिज्ञान का.उदाहरण है।

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