________________ 230 / आईती-दृष्टि की हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि इन प्रतिमाओं के लेखों में जिन जिनभद्र आचार्य : का नाम है वे विशेषावश्यक के कर्ता क्षमाश्रमण जिनभद्र ही हैं। उनकी वाचना के अनुसार एक मूर्ति के पद्मासन के पिछले भाग में 'ॐ देवधर्मोयं निवृतिकुले जिनभद्रवाचनाचार्यस्य' तथा दूसरी मूर्ति के भामण्डल में 'ॐ निवृतिकुले जिनभद्र वाचनाचार्यस्य ऐसा लेख है।" इन लेखों से फलित होता है कि सम्भवतः जिनभद्र : जी ने इन प्रतिमा को प्रतिष्ठित किया होगा तथा उनके कुल का नाम निवृति कुल था। उन्हें वाचनाचार्य भी कहा जाता था। यद्यपि जिनभद्रगणी की प्रसिद्धि क्षमाश्रमण से है किन्तु विद्वानों ने वाचक, वादी, वाचनाचार्य, क्षमाश्रमण आदि को एकार्थक माना है। वाचनाचार्य एवं क्षमाश्रमण शब्द वास्तव में एक ही अर्थ के सूचक हैं / प्रस्तुत प्रतिमा लेख के आधार पर क्षमाश्रमण निवृति कुल के सिद्ध होते हैं। उनके गुरु एवं गुरु-परम्परा के नामों की सूची प्राप्त नहीं है। नवांगवृत्ति संशोधक दोषाचार्य, सूराचार्य, गर्षि, दुर्गर्षि, उपमितिभवप्रपंचकथा रचनाकार सिद्धर्षि जैसे प्रभावशाली आचार्य इस निवृत्ति कुल में हुए हैं / निवृति कुल का सम्बन्ध आचार्य वज्रसेन के शिष्य निवृति से था, अतः क्षमाश्रमण जी आर्य सुहस्ती की परम्परा में होनेवाला वज्रसेन शाखीय सम्भव है। ___इन तथ्यों के अतिरिक्त उनके जीवन से सम्बन्धित अन्य स्रोत उपलब्ध नहीं है . जिनसे उनके जीवन पर और अधिक प्रकाश डाला जा सके / किन्तु उनके उत्तरवर्ती आचार्यों ने उनकी प्रतिभा का वैशिष्ट्य स्वीकार करते हुए उनके गुणों का वर्णन किया है, वे उपलब्ध है / जितकल्पचूर्णि के कर्ता सिद्धसेनगणी ने अपनी चूर्णि के प्रारम्भ में / छह गाथाओं द्वारा भावपूर्ण शब्दों में उनकी प्रशंसा की है—'जो अनुयोगधर, युगप्रधान, सर्वश्रुति और शास्त्र में कुशल तथा दर्शनज्ञानोपयोग के मार्गरक्षक हैं / सुवास से आकृष्ट भ्रमर जैसे कमलों की उपासना करता है उसी प्रकार ज्ञान मकरन्द के पिपासु मुनि जिनभद्रगणी के मुख से निःसृत ज्ञानामृत का पान करने के लिए उत्सुक रहते हैं" आदि-आदि। मुनि चन्द्रसूरि ने जिनवाणी के प्रति अगाध निष्ठाशील जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण को जिनमुद्रा के समान माना है। वाक्यै विशेषातिशयै विश्वसन्देहहारिभीः / जिनभद्रं जिनभद्रं किं क्षमाश्रमणं स्तुवं / / जिनभद्रगणी आगम के अद्वितीय व्याख्याता थे / आचार्य हेमचन्द्र ने उपजिनभद्रक्षमाश्रमणं व्याख्यातारः" कहकर जिनभद्रगणी के प्रति आदर-भाव प्रकट किया है।