________________ 256 / आर्हती-दृष्टि इसी वर्गीकरण के आधार पर आचार्य उमास्वाति ने भी प्रमाण को प्रत्यक्ष परोक्ष में विभक्त करके उन्हीं दो भेदों में पंचज्ञानों का समावेश किया है तथा पश्चात्वर्ती जैनतार्किकों ने प्रत्यक्ष के सकल एवं विकल के भेद से दो विभाग किए। इस वर्गीकरण का आधार भी स्थानांग में आगत प्रत्यक्ष के केवल एवं नोकेवल ये दो भेद हैं। ... ज्ञान चर्चा विकास क्रम की तृतीय आगमिक भूमिका का आधार नन्दी सूत्र गत ज्ञान चर्चा है। जान . 1. आभिनिबोधिक 2. श्रुत 3. अवधि 4. मनःपर्यव 5. केवल 1. प्रत्यक्ष . 2. परोक्ष 2. श्रुत 1. इन्द्रिय प्रत्यक्ष 1. श्रोत्रेन्द्रिय प्रत्यक्ष 2. चक्षुरिन्द्रिय प्रत्यक्ष 3. घाणेन्द्रिय प्रत्यक्ष 4. जिह्वेन्द्रिय प्रत्यक्ष 5. स्पर्शनेन्द्रिय प्रत्यक्ष 2. नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष 1. आभिनोबोधिक 1. अवधि 2. मनःपर्यय 3. केवल . १.श्रुतनिःश्रुत 1. अश्रुतनिःश्रुत 1. अवग्रह 2. ईहा 3. अवाय 4. धारणा 1. व्यंजनाग्रह 2. अर्थावग्रह . 1. औत्पत्तिकी 2. वैनयिकी 3 कार्मिकी 4. पारिणामिकी नन्दी में सर्वप्रथम ज्ञान को पांच भागों में विभक्त करके फिर इन पांच का समावेश प्रत्यक्ष एवं परोक्ष इन दो भेदों में किया गया है / प्रत्यक्ष के इन्द्रिय एवं नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष ये दो भेद किए गए हैं / इन्द्रिय प्रत्यक्ष में पांच इन्द्रियों से उत्पन्न-ज्ञान का एवं नोइन्द्रिय