Book Title: Aarhati Drushti
Author(s): Mangalpragyashreeji Samni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh Prakashan
View full book text
________________ मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान / 283 89. तं तेण तओ तम्मिम् व सुणेइ सो वा सुअं तेण। वि. भा. गा. 8 90. इंदिय-मणोनिमित्तं जं विण्णाणं सुयाणुसारेणं। निययत्थुत्तिसमत्थं तं भावसुयं मई सेसं // वि. भा. गा. 100 91. श्रुतं तु श्रुतानुसार्येव श्रुतानुसारित्वं च धारणात्मकपदपदार्थसम्बंधप्रति संधानजन्यज्ञानत्वम्। ज्ञान बि, पृ. 24 92. वि. भा. वृ. गा. 100 93. द्रव्यश्रुतानुसारी परप्रत्यायनक्षम श्रुतम। जैन सि. दी. 2/23. 94. विशेषा. भा. गा. 101 95. एगिन्दिया नियमं दुयन्नाणी, तं जहा - मइअन्नाणी य सुयअन्नाणी य। 96. वि. भा. गा -101 97. वही, -102 98. वही, -103 99. पत्तेयमक्खराइं अक्खरसंजोगजत्तिया लोए। .. एवइया सुयनाणे पयडीओ होति नायव्वा // आव. नि. गा. -17 १००.वि. भा. गा -445-46 101. अक्खर सणी सम्मं साईयं खलु सपज्जवसियं च / गमियं अंगपविटुं तत वि एए सपडिवक्खा // आ. नि. गा. -19 102 नंदी सूत्र -56 . 103. जो अक्खरोवलंभो सा लद्धी, तं च होइ विण्णाणं / - इंदियमणोनिमित्तं जो यावरणक्खओवसमो॥ वि. भा, गा. -466 104. दव्वसुयं सण्णा- वंजणक्खरं, भावसुत्तमियरं तु। वि. भा. गा -467 105. ऊससियं, नीससियं, निच्छुढं खासियं च छीयं च / निस्सिंघिय - मणुसारं, अणक्खरं छेलिआईअं॥ ___नंदी सू. 60/1, आव. नि. ग:-५० 106. श्रुतज्ञानस्य तु मतिज्ञानेन नियत: सहभावस्तत्पूर्वकत्वात् यस्य तु ___ मतिज्ञानं तस्य श्रुतज्ञानं स्याद्वा न वेति // तत्वा. भा. 1/31 107. नंदी सू. -35 108. Studies in Jain Philosophy I. 55 1.09. जं सामिकाल-कारण-विसय-परोक्खत्तणेहिं तुल्लाइं॥ वि. भा. गा. 85, . 110. नंदी सू. - 35

Page Navigation
1 ... 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384