________________ अवधिज्ञान / 295 4. क्षेत्र अवधि - नगर, उद्यान आदि क्षेत्र में जहाँ अवधिज्ञान उत्पन्न होता है, वह अधिकरण भूतक्षेत्र क्षेत्रअवधि कहलाता है तथा अवधिज्ञानी जितने क्षेत्र में स्थित द्रव्यों को जानता है, वह क्षेत्र भी क्षेत्रअवधि है। 5. काल अवधि जिस प्रथम पौरूषी आदि में अवधि उत्पन्न हुआ है, वह कालअवधि है। 6. भव अवधि जिस नारक आदि भव में अवधिज्ञान उत्पन्न हुआ है, वह नारक आदि भव, भवअवधि कहलाता है अथवा अपने या दूसरे व्यक्ति के अतीत, अनागत जितने भी भव देखता है, वे भव अवधि हैं। 7. भाव अवधि जिस क्षायोपशमिक भाव में अवधि उत्पन्न होता है, वह भाव अवधि है अथवा जिन औदारिक आदि पाँचों भावों अथवा उनमें से किसी भाव को देखता है, वह भाव अवधि है। 8. संस्थान अवधि विशेषावश्यक भाष्य में अवधिज्ञान के विभिन्न संस्थानों का उल्लेख है / जघन्य एवं उत्कृष्ट अवधि तो जितना देखता है, वही उसका संस्थान हैं। नारक जीवों का अवधिज्ञान तप्राकार, भवनपति देवों का पल्लक आकार का, व्यन्तर देवों का अवधिज्ञान पटहक आकार ज्योतिष देवों का झल्लरी आकार का सौधर्म आदि कल्पोपन्न देवों का मृदंग के आकार का, ग्रैवेयक देवों का पुष्प एवं अनुत्तर देवों का अवधिज्ञान यव जैसे संस्थान का होता है तथा मनुष्य एवं तिर्यञ्च के अवधि के नाना संस्थान हैं। संदर्भ .. 1. नंदी ( सभाष्य) . .