________________ अवधिज्ञान / 291 अन्तगत नन्दी-सूत्र में आनुगामिक अवधिज्ञान के दो भेद किए गए हैं। अन्तगत और मध्यगत / वहाँ पर अन्तगत अवधि पुनः तीन प्रकार का निर्दिष्ट है-पुरतः मार्गतः एवं पार्श्वतः। अवधि के ये भेदज्ञाता शरीर के जिस प्रदेश से ज्ञान के द्वारा देखता है, उसके आधार पर किए गए हैं / एक दिशा से जो ज्ञान करता है, उसको अन्तगत अवधिज्ञान कहा जाता है / अथवा सर्व आत्मप्रदेशों में आवरण विलय से विशद्धि होने पर भी जो औदारिक शरीर के किसी एक भाग से जानता है, वह अन्तगत अवधिज्ञान है। अन्त शब्द पर्यंत का वाची है 'आत्मप्रदेशानां पर्यन्ते स्थितमन्तगतम्।' 1. पुरतः अन्तगत-जो अवधिज्ञान औदारिक शरीर के आगे के भाग से - प्रकाश करता है। 2. मार्गत: अन्तगत-जो ज्ञान पीछे के प्रदेश को प्रकाशित करता है, वह मार्गतः अन्तगत आनुगामिक अवधिज्ञान है। . 3. पार्श्वत:- जो अवधिज्ञान एक पार्श्व अथवा दोनों पार्श्व के पदार्थों को प्रकाशित करता है। वह पार्श्वतः अवधिज्ञान है। मध्यगत जिस ज्ञान के द्वारा ज्ञाता चारों ओर के पदार्थों का ज्ञान करता है, वह मध्यगत अवधिज्ञान है / जो सर्वप्रदेशों की विशुद्धि से सारी दिशाओं से ज्ञान करता है, वह मध्यगत है / औदारिक शरीर के मध्यवर्ती स्पर्धकों की विशुद्धि, सब आत्मप्रदेशों की विशुद्धि अथवा सब दिशाओं का ज्ञान होने के कारण यह अवधिज्ञान मध्यगत कहलाता है। ___आत्मा शरीर के भीतर है और इन्द्रिय चेतना भी उसके भीतर है / इन्द्रिय चेतना की रश्मियां अपने-अपने नियत प्रदेशों के माध्यम से बाहर आती हैं / अवधिज्ञान के लिए कोई एक नियत प्रदेश या चैतन्य केन्द्र नहीं है। उसकी रश्मियों के बाहर आने के लिए शरीर के विभिन्न प्रदेश चैतन्यकेन्द्र ही हैं / अन्तगत अवधिज्ञान की रश्मियाँ शरीर के पर्यन्तवर्ती (अग्र, पष्ठ और पार्श्ववर्ती) चैतन्यकेन्द्रों के माध्यम से बाहर आती हैं। मध्यगत अवधिज्ञान की रश्मियाँ शरीर के मध्यवर्ती चैतन्य केन्द्रों-मस्तक आदि से बाहर निकलती हैं। ___ सूत्रकार ने अन्तगत और मध्यगत अवधिज्ञान का भेद स्वयं स्पष्ट किया है। उनके अनुसार एक दिशा में जाननेवाला अवधिज्ञान अन्तगत अवधिज्ञान है और सब .