________________ - विशेषावश्यकभाष्य : एक परिचय / 220. भेदों का भी इसमें आकलन हुआ है। इसमें पद-पद पर ज्ञान रत्नों की ज्योतियां जल रही हैं। . विशेषावश्यक में आवश्यक के प्रथम अध्ययन सामायिक से सम्बन्धित नियुक्ति गाथाओं का व्याख्यान है। अतः इस भाष्य का अपर नाम सामायिकभाष्य भी है।" इस व्याख्यान में मंगलरूप ज्ञानपंचक, निरुक्त, निक्षेप, अनुगम, नय, सामायिक की प्राप्ति, सामायिक के बाधक कारण चारित्र लाभ, प्रवचन सूत्र, अनुयोग, सामायिक की उत्पत्ति, गणधरवाद, अनुयोगों का पृथक्करण, निह्नववाद आदि विभिन्न विषयों का विस्तार से कथन है / ज्ञान-पंचक के प्रकरण में आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान, चक्षु और मन की अप्राप्यकारिता श्रुत-निश्रित मतिज्ञान के 336 भेद, भाषा का स्वरूप, श्रुत के चौदह प्रकार आदि का भी विशद विवेचन प्राप्त है / चारित्र रूप सामायिक की प्राप्ति का विचार करते हुए भाष्यकार ने कर्म की पद्धति, स्थिति, सम्यक्त्व प्राप्ति आदि का विस्तारपूर्वक विवेचन किया है। चारित्र प्राप्ति के कारणों पर प्रकाश डालते हुए क्षमाश्रमणजी ने सामायिक, छेदोपस्थापना आदि पंच चारित्र की व्याख्या की है। सामायिकचारित्र का उद्देश, निर्देश, निर्गम, क्षेत्र, काल, पुरुष आदि 26 द्वारों से वर्णन किया है। सामायिक के तृतीय द्वार निर्गम की व्याख्या करते हुए भाष्यकार ने भगवान् महावीर के एकादश गणधरों का विस्तार से विवेचन किया है / आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता सिद्धि के लिए अधिष्ठातृत्व, - संघातपरार्थत्व आदि अनेक हेतु दिये हैं / एकात्मवाद का निराकरण करके अनेकात्मवाद की प्ररूपणा भाष्य में है। आत्मा के स्वदेह परिमाणत्व के साथ ही जीव का नित्यानित्य भी आचार्य ने सिद्ध किया है। विज्ञान भूतधर्म न होकर आत्मतत्त्व का धर्म है। भाष्य में कर्म-मीमांसा भी विशालता से हुई हैं। द्वितीय गणधर अग्निभूति के संशय का निराकरण करते समय कर्म के अस्तित्व सिद्धि में अनेक हेतु दिये गये हैं। कर्म के पौदगलिकत्व को सिद्ध करते हए कर्म और आत्मा के सम्बन्ध पर प्रकाश डाला गया है। आत्मा और देह की भेद सिद्धि में चार्वाक् सम्मत भूतवाद का निरास किया गया है। मण्डित के संशय का निवारण करने के लिए विविध हेतुओं से बन्ध और मोक्ष की सिद्धि की गयी है। सामायिक ग्यारहवें समवतार द्वार का व्याख्यान करके भाष्यकार ने द्रव्यानुयोग, चरणकरणानुयोग आदि अनुयोगों के पृथक्करण की / चर्चा की है। नियुक्तिकार निर्दिष्ट सात निह्नवों में शिवभूति बोटिक नामक एक निहव / को और मिलाकर भाष्यकार ने आठ निहवों की मान्यताओं का वर्णन किया है। निह्नववाद के बाद सामायिक के अनुमत आदि शेष द्वारों का वर्णन करते हुए भाष्यकार