________________ 154 / आहती-दृष्टि .. 6. * एकान्त एवं निरपेक्ष सामान्य-विशेष में आनेवाले दोष जात्यन्तर वस्तु में नहीं आ सकते। 7. वस्तु की व्यवस्था संवेदन से ही हो सकती है। 8. विचार के नियम अनुभव सापेक्ष होकर ही सत्य की व्याख्या कर सकते 9. सभी दर्शनों ने किसी न किसी रूप में एकत्र विरोधी धर्मों को स्वीकार किया है। . 10. सभी दार्शनिकों को विरोधी धर्मों की व्यवस्था सापेक्षता के आधार पर ही करनी पड़ती है। 11. अनेकान्त, विरोधी धर्मों में समन्वय के सूत्रों का अन्वेषण करता है। सन्दर्भ : 1. षण्णामपिपदार्थनामस्तित्वाभिधेयत्वज्ञेयत्वानि / प्रशस्तपादभाष्य पृ. 41 / / 2. 'यतो वाचा निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह / '. . . .तैतिरीयोपनिषद् 2/4 3. 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म'। छान्दोग्योपनिषद् 14/1 / 4. 'नेह नानास्ति किंचन'। - काठकोपनिषद्, 2/1/11 / 5. चित्तमात्रं न दृश्योऽस्ति, द्विधा चित्तं हि दृश्यते। लंकावतार सूत्र 3/65 / 6. नान्योऽनुभाव्यस्तेनास्ति, तस्य नानुभवोऽपरः। तस्यापि तुल्यचोद्यत्वात् स्वयं सैव प्रकाशते // प्रमाणवार्तिक 3/2/327 / 7. न सन् नासन् न सदसन चाप्यनुभयात्मकम्। चतुष्कोटिनिर्मुक्तं तत्त्वं माध्यमिकाः विदुः॥ . माध्यमिक कारिका 1/7 / 8. द्वे सत्ये समुपाश्रित्य बुद्धानां धर्मदेशना। लोकसंवृतिसत्यं च सत्यं च परमार्थतः // मध्यमकवृत्ति 24/8 / कल्पितः परतन्त्रश्च, परिनिष्पन्न एव च। अर्थादभूतकल्पाच्च, द्वयाभावाच्च कथ्यते // . बौद्ध दर्शन मीमांसा, पृ. 222