________________ 186 / आर्हती-दृष्टि कुछ मानते हैं कि पर्यायस्तिक उत्पद्यमान पर्याय को ही मानता है / 'उत्पद्यमानाः पर्यायाः पर्यायास्तिकमुच्यते' इन दोनों मतों का समन्वय करने से फलित होता है कि पर्यायास्तिक नय भूत एवं अनागत को स्वीकार करता है तथा वर्तमान का निषेध करता है अतः यह अस्तिनास्ति रूप है। भूत भविष्य की अपेक्षा अस्ति वर्तमान की अपेक्षा नास्ति है। इससे भी अवक्तव्य भंग का कथन होता है। क्योंकि अस्ति नास्ति को एक-साथ नहीं कहा जा सकता। संक्षेप में द्रव्यास्तिक से परम संग्रह का विषय भूत सत् द्रव्य और मातृकापदास्तिक से सत् द्रव्य के व्यवहाराश्रित धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य का. विभाग उनके भेद-प्रभेद अभिप्रेत है। प्रत्येक क्षण में नवनवोत्पन्न वस्तु का रूप उत्पत्रास्तिक और प्रत्येक क्षण में होनेवाला विनाश या भेद पर्यायास्तिक से अभिप्रेत है / उत्पाद व्यय एवं धौव्य इस त्रिपदी का समावेश चतुर्धा विभक्त सत् में हो जाता है।