________________ 206 / आईती-दृष्टि उभयरूप होते हैं। 'ज्ञानबिन्दु-प्रकरण' में देशघाती प्रकृति के रस स्पर्धकों को चतुःस्थानक, त्रिस्थानक, द्विस्थानक एवं एकस्थानक के भेद से चार प्रकार का स्वीकार किया गया है। देशघाती प्रकृति के चतुःस्थानक एवं त्रिस्थानक रस-स्पर्धक तो सर्वघाती ही होते हैं तथा द्विस्थानक स्पर्धक कुछ सर्वघाती एवं कुछ देशघाती होते हैं / एकस्थानक स्पर्धक देशघाती ही होते हैं / विपाक की मन्दता एवं तीव्रता के आधार पर एकस्थानक यावत् चतुःस्थानक आदि भेद किये गये हैं। गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) में रसस्पर्धकों की सर्वघातिता एवं देशघातिता को लता, दारु, अस्थि एवं शैल के दृष्टान्त से समझाया गया है। घातिकर्मों के स्पर्धक लता आदि की तरह चार प्रकार के होते हैं। जैसे लता, दारु, अस्थि एवं शैल क्रमशः कठोर होते हैं वैसे ही कर्मों के स्पर्धकों की फल दान शक्ति उत्तरोत्तर बढ़ती जाती है / लता से लेकर दारु के अनन्तवें भाग पर्यन्त तक के रस-स्पर्धक देशघाती होते हैं / दारु के अनन्त बहुभाग से लेकर अस्थि और शैलरूप सब स्पर्धक सर्वघाती है। लता स्थानीय स्पर्धकों की ज्ञान बिन्दु में आगत एक स्थानक स्पर्धक कहा जा सकता है, वे देशघाती ही होते हैं / दारु तुल्य स्पर्धक द्वि-स्थानकं है उनमें कुछ देशघाती एवं कुछ सर्वघाती हैं। अस्थि तुल्य त्रि-स्थानक एवं शैल तुल्य चतुःस्थानक रस-स्पर्धक होते हैं जो सर्वघाती ही होते हैं। एक प्रश्न उपस्थित होता है कि देशघाती के स्पर्धक सर्वघाती कैसे हो सकते हैं? इसको समाहित करते हुए गोम्मटसार (कर्मकाण्ड) की टीका में कहा है कि मतिज्ञानावरण आदि देशघाती प्रकृतियों का अनुभाग शैल, अस्थि, दारु एवं लता सदृश होता है ।,अनुभाग की तीव्रतावाले सर्वघाती एवं मन्दतावाले रस-स्पर्धक देशघाती होते हैं, जैसे चक्षुदर्शनावरणीय देशघाती प्रकृति है। एकेन्द्रिय में चक्षुदर्शन के सर्वघाती परमाणुओं का उदय होता है, अतः उनको चक्षु दर्शन की प्राप्ति नहीं होती / वे सर्वघाती परमाणु चक्षुदर्शन रूप आत्मगुण को प्रकट ही नहीं होने देने तथा दूसरी ओर चतुरिन्द्रिय के चक्षुदर्शन के देशघाती परमाणुओं का उदय है / देशघाती का उदय होने पर भी आत्म-गुण आंशिक रूप में प्रकट होता है, अतः उनके चक्षु दर्शन होता है / यदि चक्षु-दर्शनावरण आदि देशघाती प्रकृतियों के रसस्पर्धक सर्वघाती ही होते तो किसी भी जीव को चक्षुदर्शन प्राप्त ही नहीं होता तथा वे देशघाती ही होते तो सबको चक्षुदर्शन उपलब्ध होना चाहिए; अतः स्पष्ट है चक्षुदर्शन के रसस्पर्धक उभय रूप हैं। सर्वघाती एवं देशघाती स्पर्धकों का बन्ध कब, किस रूप में होता है इत्यादि विषयों का भी विवेचन 'ज्ञान बिन्दु' आदि अनेक ग्रन्थों में प्राप्त है। देशघाती एवं सर्वघाती कर्म-प्रकृतियों के आधार पर भी क्षयोपशम के दो प्रकार