________________ चतुर्विध सत् की अवधारणा / 185 यह उनकी मौलिक अवधारणा है / उमास्वाति ने इस चतुर्विध सत् का विशेष व्याख्यान नहीं किया। ज्ञान की स्थूलता एवं सूक्ष्मता के आधार पर सत् के चार पदों का निरूपण किया। टीकाकार सिद्धसेनगणी ने इनकी कुछ स्पष्टता की है। प्रथम दो सत् (द्रव्याश्रित) द्रव्यनयाश्रित है तथा अन्तिम दो भेद पर्यायनयाश्रित हैं / सत् के चार विभागों के अन्तर्गत आचार्य उमास्वाति ने सत् की सम्पूर्ण अवधारणा को समाहित करने का प्रयत्न किया है / द्रव्यास्तिक सत् का कथन द्रव्य के आधार पर है, मातृकापदास्तिक का कथन द्रव्य के विभाग के आधार पर, उत्पन्नास्तिक का व्याकरण तात्कालिक वर्तमान पर्याय के आधार पर है तथा पर्यायास्तिक का कथन भूत एवं भावी पर्याय के आधार पर हुआ है ऐसा प्रतीत होता है / द्रव्यास्तिक के अनुसार-'असन्नाम नास्त्येव द्रव्यास्तिकस्य' असत् कुछ होता ही नहीं वह सत् को ही स्वीकार करता है / 'सर्ववस्तु सल्लक्षणत्वादसप्रतिषेधेन सर्वसंग्रहादेशो द्रव्यास्तिकम् (5/31 टी, पृ. 400) / द्रव्यास्तिक सत् संग्रह नय के अभिप्राय वाला है। ‘सर्वमेकं सदविशेषात्' इस सत् के द्वारा सप्तभंगी का प्रथम भंग ‘स्यात् अस्ति' फलित होता है। ___ मातृकापदास्तिक सत् के द्वारा द्रव्यों का विभाग होने से अस्तित्व एवं नास्तित्व धर्म प्रकट होता है / मातृकापद व्यवहारनयानुसारी है द्रव्यास्तिक के द्वारा सम्पूर्ण पदार्थों को सत् कह देने मात्र से वह व्यवहार उपयोगी नहीं हो सकता / व्यवहार विभाग के बिना नहीं हो सकता। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का द्रव्यत्व तुल्य होने पर भी वे परस्पर भिन्न स्वभाव वाले हैं। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय नहीं हो सकती यही मातृकापदास्तिक का कथन है / विभक्ति का निमित्त होने के कारण मातृकापद, व्यवहार उपयोगी है—'स्थूलकतिपयव्यवहारयोग्यविशेषप्रधान मातृकापदास्तिकम्'। ___ उत्पन्नास्तिक सत् का सम्बन्ध मात्र वर्तमान काल से है / वह अतीत एवं अनागत को अस्वीकार करता है.। अतः यह अस्ति नास्ति रूप है / वर्तमान को स्वीकार करता है अतः अस्ति है। भूत अनागत का निषेध करता है अतः नास्ति है। इससे सप्तभंगी का अवक्तव्य नाम का भंग फलित होता है। पर्यायनयानुगामी होने से इसकी दृष्टि भेदप्रधान है / सम्पूर्ण व्यवहार की.कारणभूत वस्तु निरन्तर उत्पाद विनाशशील है। कुछ भी स्थितिशील नहीं है, यह उत्पन्नास्तिक का कथन है। इसकी मान्यता उत्पत्ति में ही है। ‘उत्पन्नास्तिकमुत्पनेऽस्तिमतिः' अनुत्पन्न स्थिति को यह स्वीकार ही नहीं करता। . पर्यायास्तिक नय विनाश को स्वीकार करता है / जो उत्पन्न हुए हैं वे अवश्य ही विनश्वर स्वभाव वाले हैं। जितना उत्पाद है उतना ही विनाश / 'विनाशाऽस्तिमतिकम्'