________________ अनेकान्त की सर्वव्यापकता / 173 दुतियो अन्तो। एते ते ब्राह्मणउभो अन्ते अनुपगम्म मज्झेन तथागतो धम्मं देसेतिअविज्म पच्चया संखारा' संयुत्तनिकाय, 1147 शून्यवादी एक ही संसार को अस्ति, नास्ति रूप कहते हैं। 'जगत् वैचित्र्यं व्यवहारतो अस्ति निश्चयतो नास्ति' इस प्रकार का कथन अनेकान्त विहिन दृष्टि नहीं कर सकती। ___ बौद्ध दार्शनिक एक ही निर्विकल्पक प्रत्यक्ष को प्रमाण एवं अप्रमाण दोनों मानते हैं। नीलादि अंश में 'यह नीला है' इस प्रकार अनुकूल विकल्प पैदा करने का कारण प्रमाण है तथा क्षणिकांश पक्ष में अक्षणिक विकल्प का दर्शन अप्रमाण है / बौद्ध दर्शन ने सविकल्पक ज्ञान को बाह्य नीलादि पदार्थ की अपेक्षा सविकल्पक एवं स्वरूप की अपेक्षा निर्विकल्पक स्वीकार करके स्वतःही अनेकान्त को स्वीकृति दे दी है / न्यायबिन्दु में धर्मकीर्ति ने कहा है कि–'दर्शनोतरकालभाविनः स्वाकारध्यवसायिन एकस्यैव विकल्पस्य बाह्यार्थे सविकल्पत्वमात्मस्वरूपे तु सर्वचित्त चैतानामात्मसंवेदनं प्रत्यक्षम्' / नैयायिक वैशेषिक दर्शन ने भी अपने सिद्धान्त प्रतिपादन में अनेकान्त दृष्टि का अवलम्बन लिया है। यथा उनका मानना है, इन्द्रिय सन्निकर्ष से धूमज्ञान होता है , धूमज्ञान से अग्नि की ज्ञप्ति होती है। यहां इन्द्रिय सनिकर्ष प्रत्यक्ष प्रमाण है / धूमज्ञान उसका फल है और यही धूमज्ञान अग्निज्ञान की अपेक्षा अनुमान प्रमाण है / फलस्वरूप एक ही धूमज्ञान इन्द्रिय सन्निकर्ष रूप प्रत्यक्ष प्रमाण का फल एवं अनुमान प्रमाण दोनों है। एक ही ज्ञान फल भी है प्रमाण भी है / यह कथन अनेकान्त का संवाहक है। वैशेषिक नैयायिक दर्शन ने दो प्रकार का सामान्य स्वीकार किया है—महासामान्य, अपर सामान्य / अपर सामान्य का ही अपर नाम सामान्य विशेष है / वह द्रव्य, गुण और कर्म में रहता है। द्रव्यत्व सामान्य विशेष है। द्रव्यत्व नाम का सामान्य ही द्रव्यों में रहता है, इस अपेक्षा से सामान्य है तथा गुण और कर्म से अपनी व्यावृत्ति करवाता है अतः विशेष है यह अपेक्षा अनेकान्त के बिना असम्भव है। ___सांख्य दर्शन प्रकृति को त्रिगुणात्मक मानते हैं और ये तीनों गुण आपस में विरोधी हैं उनका एक ही प्रकृति में सहावस्थान अनेकान्त के बिना सम्भव नहीं है। एक ही प्रकृति संसारी प्राणियों के प्रति प्रवृत्तिधर्मा तथा मोक्षस्थ पुरुषों के लिए निवृत्तिधर्मा है यह अभ्युपगम भी अनेकान्त का द्योतक है। सांख्य प्रकृति और पुरुष को निश्चयत: भिन्न तथा व्यवहारत: अभिन्न मानते हैं यह कथन भी अनेकान्त की पुष्टि करता है। मीमांसकों ने तो प्रकारान्तर से उत्पाद, व्यय एवं धोव्य रूप त्रयात्मक वस्तु को