________________ अनेकान्त का तात्त्विक एवं तार्किक आधार | 149 पर सींग नहीं है यह माना जा सकता है किन्तु जो उपलब्ध हो रहा है उसका अभाव कैसे माना जा सकता है? पदार्थ में अस्तित्व एवं नास्तित्व का सह-उपलम्भ हो रहा है। तब उनका निषेध नहीं किया जा सकता। वस्तु के स्वरूप में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। - वस्तु सामान्य-विशेषात्मक होती है / इस प्रकार का वस्तु का मिश्रित स्वरूप जैन के अतिरिक्त नैयायिक, सांख्य एवं मीमांसक ने भी स्वीकार किया है। किन्तु इस तात्त्विक सिद्धान्त के तार्किक पक्ष का विस्तार केवल जैनों ने ही किया है जिसके परिणामस्वरूप विचार के नियमों के मूल्यांकन में एक क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ। ___ जैन तार्किकों ने दृढ़ता के साथ अपने मंतव्य को प्रस्तुत करते हुए कहा-वस्तु के स्वभाव का निर्णय केवल मात्र अनुभव से ही हो सकता है। अनुभव निरपेक्ष तर्क वस्तु स्वरूप के निर्णय का साधन नहीं हो सकती। यद्यपि जैन के अनुभव का क्षेत्र विस्तृत है वह तर्क, स्मृति आदि को भी अनुभव में ही समाहित करता है। - डॉ. सतकोड़ी मुखर्जी ने परम्परागत प्रस्थानों में स्वीकृत विचार के नियमों को जैन वस्तुवाद के सन्दर्भ में प्रस्तुत किया है, जो निश्चित रूप से मननीय है / परम्परागत.. . प्रस्थानों में विचार के तीन नियम प्रचलित हैं- (1) Law of Identity. A is A (तादात्मय का नियम जो है सो है) ... (2).Law of Contradicition. (विरोध का नियम / ) . Acannot both be and not be. (कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं जो हो भी और नहीं भी हो।) ... (3) Law of excluded middle. (मध्य व्यावर्तक नियम / ) A must bex or not X. (प्रत्येक पदार्थ या है या नहीं है।) विरोध के नियम का वक्तव्य निषेधात्मक होता है, वह यह बताने में असमर्थ है कि वस्तु क्या है ? जबकि मध्य व्यावर्तक वस्तु कैसी है ? यह बताता है। . . विचार के ये नियम सत्य हैं किन्तु जब तक इनके साथ आवश्यक शर्ते न जोड़ी बायें तब तक ये वास्तविक तथ्यों का विशुद्ध रूप से प्रतिपादन करने में असमर्थ हैं। बैन इन नियमों की अनुभव निरपेक्षता पर विश्वास नहीं करता। अनुभव निरपेक्ष तर्क पर आधारित विचार के नियम तथ्यों का ज्ञान कराने में भ्रामक होते हैं। अनुभवगम्य मथ्यों के परीक्षण से पदार्थ का स्वरूप परिवर्तनशील प्रतीत होता है तथा जैन का यह गंतव्य है कि विचार के इन नियमों को वस्तु के परिवर्तन एवं उसके अन्य पक्षों से . सामञ्जस्य रखना चाहिए।