________________ 150 / आर्हती-दृष्टि .. A priori logic' पर आधारित 'अ अ है' तादात्म्य का यह नियम वस्तु स्वरूप का निर्णय नहीं कर सकता / अपितु इसका वक्तव्य वस्तु स्वरूप को अन्यथा रूप में प्रस्तुत करता है। In its bare form Ais A, the law does not possess any significance and is apparently nothing more than tautology. If, however, it is taken to express the mere identity of the subject and the predicate, it goes only half way towards the acquisition of meaning, because it leaves out the difference without which the identity is unmeanings. __ अ, अ है / तादात्म्य का यह नियम प्रतीकवाद के दोष से दूषित है ज्योंही हम प्रतीक के स्थान पर किसी वास्तविक पदार्थ को स्थापित करते हैं तब यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है। लेखनी लेखनी है' यह तादात्म्य का नियम है किन्तु हम देखते हैं कि लेखनी में प्रतिक्षण परिवर्तन हो रहा है / जब यह कारखाने से बनकर आयी थी, तब नई थी, अब पुरानी हो गयी है। नई-पुरानी लेखनी नितान्त एक नहीं हो सकती। लेखनी बनने से पूर्व एवं लेखनी के टूट जाने के बाद, यह लेखनी नहीं रहेगी। अतः '. तादात्म्य का नियम सशर्त ही सत्य हो सकता है। . . In the language of Jaina Philosopher, the above form can be expressed as 'In one particular aspect A is a. The law of identity thus becomes significant if interpreted in the light of syadavada." (स्याद्वाद) लेखनी अपने स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा लेखनी ही है। स्वचतुष्ट्य के नियम के साथ ही तादात्म्य का नियम वस्तु स्वरूप की व्याख्या के क्षेत्र में यथार्थ हो सकता है। विरोध एवं मध्य व्यावर्तक नियम के सन्दर्भ में भी यही शर्त लागू होती है। विरोध के नियम के अनुसार एक वस्तु है और नहीं, दोनों नहीं हो सकती। किन्तु विश्लेषण करने पर ज्ञात हो जाता है कि अपेक्षा भेद से विरोधी धर्म भी एक साथ घटित होते हैं। अस्तित्व, नास्तित्व, अपेक्षाभेद से एक ही धर्मी में रहते हैं। लेखनी लेखनीत्वेनं अस्तिरूप है किन्तु अलेखनीत्वेन अस्ति रूप नहीं है अतः विरोध के नियम की प्रामाणिकता भी सशर्त है अर्थात् लेखनी अपने स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव की अपेक्षा है और नहीं दोनों नहीं हो सकती यह सत्य है किन्तु पर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव