________________ सत्य व्याख्या का द्वार : अनेकान्त / 135 .. अनेकान्त आगम युग से दर्शन युग में एवं दर्शन युग से वर्तमान युग तक अपनी निरन्तर विकास यात्रा करता आ रहा है। अलग-अलग युग के अलग प्रश्न और समाधान होते हैं। आज व्यवहार जगत् में अनेकान्त के प्रयोग के द्वारा ही व्यवहार जगत् की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है / जीवन में अनेक विरोधी प्रश्न आते हैं। उनका समाधान अनेकान्त में ही खोजा जा सकता है। यदि हम अनेकान्त दृष्टि के द्वारा विरोधी धर्मों को भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण से देखते हैं तो उसका समाधान उपलब्ध हो जाता है। यदि हम सत्य को सत्य दृष्टि से देखने का प्रयल नहीं करते, दो विरोधी सत्यों को दो भिन्न दृष्टिकोण से नहीं देखते हैं, तो वहां संघर्ष होना अनिवार्य है। संघर्ष को समाप्त करने का महत्त्वपूर्ण उपाय यही है कि हम जानलें कि विश्व-व्यवस्था के मूल में विरोधी युगल निरन्तर सक्रिय हैं एवं उन विरोधी युगलों का सहावस्थान है। वे साथ में ही रहते हैं। जब अनेकान्त की दृष्टि उपलब्ध हो जाती है तो सत्य का द्वार स्वतः उद्घाटित हो जाता है। ___ अनेकान्त सहिष्णुता का दर्शन है। राजनीति का क्षेत्र हो या समाजनीति का, धर्मनीति का हो या शिक्षानीति का, सफलता के लिए अनेकान्त दर्शन को व्यवहार्य बनाना आवश्यक है। जब तक सह-अस्तित्व, सहिष्णुता, सामञ्जस्य आदि मूल्यों को व्यावहारिक नहीं बनाया जाएगा तब तक समाधान उपलब्ध नहीं होगा। ये सारे मूल्य अनेकान्त के ही परिकर हैं / मनुष्य अनेकान्त को समझे और इसके अनुरूप आचरण करे तो युगीन समस्याओं का समाधान पा सकता है। आज अपेक्षा है अनेकान्त कोरा दर्शन न रहे वह जीवन बने / महावीर ने जीवन जीकर ही दर्शन दिया था। आज दर्शन और जीवन को अलग कर दिया गया है जिससे समस्याएँ पैदा हो रही हैं। शान्तसहवास के लिए आवश्यक है दर्शन और जीवन को पुनः जोड़ा जाए। अनेकान्त सत्य व्याख्या के द्वार के साथ ही जीवन सत्यों को जीने का भी द्वार बन जाए। सन्दर्भ 1. जदत्थि णं लोगेतं सव्वं दुपओआरं, तं जहा जीवच्चेव अजीवच्चेव ठाणं 2/1 2. यदेव तत् तदेव अतत्, यदेवैकं तदेवानेकम्, यदेवसत् तदेवासत्, यदेव . नित्यं तदेवानित्यम्, इत्येकवस्तुवस्तुत्वनिष्पादकपरस्परविरुद्धशक्तिद्वय प्रकाशनमनेकान्तः समयसार ।आत्मख्याति 10/247