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१ : धर्म : सर्वोच्च तत्त्व
जीवन : एक कच्चा धागा
जीवन एक कच्चा धागा है। इसे टूटने में समय नहीं लगता। एक झटका लगा कि टूट जाता है, पर जिस प्रकार चतुर जुलाहा कच्चे धागों को भी चातुर्य से धीरे-धीरे काम लेता हुआ उनका वस्त्र बनाकर लाभान्वित होता है, उसी प्रकार हर व्यक्ति चातुर्य से इस जीवन का लाभ उठा सकता है। जीवन की सार्थकता
जीवन की सार्थकता धन-संपत्ति पाना नहीं है, ऊंची-ऊंची बिल्डिंगों का निर्माण करना और बड़े-बड़े कल-कारखाने लगाना भी नहीं है। क्यों? यह इसलिए कि ये सब उपलब्धियां भौतिक जीवन से संबंध रखती हैं। इनसे आत्मा का कोई हित नहीं सधता। आत्मिक दृष्टि से सबसे बड़ी उपलब्धि है-शील और आचार। यह उपलब्धि जिसके पास होती है, वह सारे संसार को जीत लेता है। विदुरनीति का एक श्लोक इसी भावना का प्रतिनिधित्व करता है
सभा जिता वस्त्रवता, मिष्टाशा गोमता जिता। अध्वा जितो यानवता, सर्वं शीलवता जितम्॥ जो अच्छे वस्त्र धारण करता है, वह सभा को जीत लेता है, जिसके पास गाय है, वह तरह-तरह की मिठाइयां खाने की इच्छा को जीत लेता है (पूरी कर लेता है), जिसके पास वाहन है, वह लंबे मार्ग को भी जीत लेता है (तय कर लेता है), पर
शीलसंपन्न सबको जीत लेता है। * मैं मानता हूं, यदि चरित्र ऊंचा है तो वहां सब योग्यताएं स्वयं व्यक्त हो जाती हैं। चरित्र-विकास की योजना लेकर हम ग्राम-ग्राम में घूम रहे हैं। आज भी हमने पंजाब और राजस्थान दो प्रांतों की क्षेत्र-स्पर्शना की है। धर्म : सर्वोच्च तत्त्व
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