Book Title: Aage ki Sudhi Lei
Author(s): Tulsi Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ २५. श्रद्धा और आचार की समन्विति २६. जैन-धर्म : एक वैज्ञानिक धर्म २७. साधना का प्रभाव २८. सत्संग का महत्त्व २९. कैसे मनाएं महावीर को ३०. विद्याध्ययन : क्यों: कैसे ३१. सुख और शांति का मार्ग ३२. दीक्षा : सुख और शांति की दिशा में प्रयाण ३३. आत्मदर्शन : जीवन का वरदान ३४. जाग्रत जीवन ३५. आकांक्षाओं का संयम ३६. पूंजीवाद और अपरिग्रह ३७. सच्चरित्र क्यों बनें ३८. अच्छे और बुरे का विवेक ३९. जाग्रति : क्यों: कैसे ४०. धर्म का तूफान ४१. अनेकांत और वीतरागता ४२. अहिंसा और अनासक्ति ४३. शांति - सुख का मार्ग-त्याग ४४. मैत्री और राग ४५. आचार और विचार से पवित्र बनें ४६. आस्तिक : नास्तिक ४७. आगे की सुधि लेइ ४८. महाव्रत से पूर्व अणुव्रत ४९. दुःख - मुक्ति का आवाहन - अणुव्रत ५०. आचार और मर्यादा ५१. स्वस्थ समाज रचना ५२. अणुव्रत : जाग्रत धर्म ५३. समता का दर्शन ५४. संघ का गौरव • परिशिष्ट Jain Education International सोलह For Private & Personal Use Only १५४ १६० १६६ १७३ १७९ १८६ १९६ २०२ २०७ २११ २२० २२९ २३४ २३८. २४८ २५४ २५९ २६३ २७० २७५ २७८ २८१ २८५ २९० २९५ २९९ ३०२ ३०५ ३०७ ३१३ ३१७ www.jainelibrary.org

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