Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४५)
“अनुयोगद्वार'- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
.......... मूलं [११-१३] / गाथा [१...] ...... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र -२] “अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति::
प्रत सूत्रांक [११-१३]]
गाथा ॥१..||
श्रीअनु० हारि वृत्ती ॥१०॥
अनवगतार्थादौ गुरुं प्रति प्रश्नः प्रतिप्रश्नः मन्थस्य पुनः पुनरभ्यसनं परावर्तनं अहिंसालक्षणधर्मान्वाख्यानं धर्मकथा ग्रंथार्थानुचिन्तनमनुप्रेक्षा, व्यावश्यआह-आगमतोऽनुपयुक्तो व्यावश्यकमित्येतावतैवामिलपितार्थसिद्धेः शिक्षितादिश्रुतगुणोत्कीर्तनमनर्थकमिति, सक्यते, शिक्षितादिश्रुत- काधिकार: गुणकीर्तनं कुर्वन्निदं ज्ञापयति यह सकलदोषविप्रमुक्तमपि श्रुतं निगदतो द्रव्यश्रुतं भवति, द्रव्यावश्यक प, एवं सर्व एव ईयादिकिया-1 विशेषः अनुपयुक्तस्य विफल इति, उपयुक्तस्त्र तु वथा स्खलितादिदोषदुष्टमपि निगदतो भाक्श्रुतमेवीर्यादयोऽपि क्रियाविशेषाः कर्ममला-1 पगमायेति, एत्व व अवायदसणथं वीणक्खरमि उदाहरण-इह भरहमि रायगिह नगरं, तत्व गया सेणिओ नाम होस्था, तरस पुत्तो पयाणु| सारी चविहधुद्धिसंपन्नो अभओ णाम होत्था, अण्णथा तेणे काळेण तेणं समपर्ण समणे भगवं महावीरे इह भरहमि विहरमाणे तंमि णगरे
समोसरिंसु, तत्थ य बहवे सुरसिद्धविजाहरा धम्मसवणनिमित्तं समागछिसु, तसो धम्मकहावसाणे णियणियभवणाणि गच्छताणं एगस्स | विजाहरस्स णहगामिणीए विजाए एकमक्खरं पम्हमासी, तओ तं वियलविज णियगभवणं गंतुमचाएन्तं मंडुक इवोप्पणिवयमाण सेणिए अदक्खु, ततो सो भगवतं पुरिछसु, से य भगवं महावीरे अकहिंसु, तं च कहिाजमाणं निमुणेत्ता सेणियपुत्ते अभए विजाहरं एवं वयासी-जइ मर्म सामण्णसिदि करेसि ततोऽहं ते अक्खरै भामि पयाणुसारितणओ, से य कार्हसु, ततो से अभए तमक्खरं लर्मिसु, लभिचा य विजाहरस कासु, ततो से य पुष्णविज्जो तीए विष्जाए अभयस्स साहणावार्य कहेता णियगभवणं गमिमुत्ति, एस विडतो, अयमत्थोवणओ-जहा तस्स विजाहरस्स होणक्खरदासेणं जहगमणमेव पम्हमासी, वंमि य अहंते बिहला विजा, एवं हीनाऽर्थभेदोऽर्थ| भेदात् क्रियाभेदादयस्ततो मोक्षाभावस्तदभावे च दीक्षावैययामिति अहियकखरंमि उदाहरणं-पाटलिपु से पथरे चंदगुत्तपुसस्स पिंदुसारस्स पुत्तो
P॥ असोगो नाम राया, वस्स असोगस्स पुत्तो कुणालो नाम, उजेणी से कमारमोचीए दिषणा,मा बुट्टर, अण्णता तस्स रण्णो निवेदितं-जहा कुमारो
दीप अनुक्रम [१२-१४] |
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