Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 58
________________ आगम (४५) प्रत सूत्रांक [११४] गाथा दीप अनुक्रम [१३७] श्रीअनु० हारि. वृत्ती ॥ ५४ ॥ "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र - २ (मूलं + वृत्तिः) मूलं [११४] / गाथा [१५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.. आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र - [२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी - रचिता वृत्तिः: नुपूर्व्यनुसारतो व्याक्षेपान्तरमपास्य स्विमितोपयुक्तेनान्तरात्मना कालप्राधान्यमधिकृत्य निखिलमेव भावनीयमिह पुनर्भावितार्थत्वाविस्तरभयाच्च नोक्तमिति शेषं सूत्रसिद्धं यावत् 'अहवोणिहिया कालाणुपुथ्वी तिविहा पनते त्यादि ( ११४-९८) अत्र सूर्यकियानिर्वृत्तः कालस्तस्य सर्वप्रमाणानामाद्यः परमः सूक्ष्मः अमेयः निरवयवः उत्पलपत्रशतवेधाद्युदाहरणोपलक्षितः समयः, तेसिं असंखेज्जाण | समुदयसमितीए आवलिया संखेन्जाओ आवलिआओ आणुचि ऊसासो, संखेन्जाओ आवलियाओ णिरसासो, दोण्डवि कालो एगो पाणू, सचपाणूकालो एगो थोवो, सत्तथोवकालो एग लवो सतहत्तरिलबो एगमुहुत्तो, आहोरतादिया कंठा जाव वाससय सदस्सा, 'इच्छयठाणेण गुणं पणमुष्णं चदरासीत्तिगुणितं च । काऊण तइयवारा पुब्वंगादीण गुण संखं ॥ १ ॥ पुरुवंगे परिमाणं पंच सुष्णं चत्ररासीय १, तं एवं पुब्बंगं चुलसीए सतसहस्सेहिं गुणितं एवं पुब्वं भवति, तस्स इमं परिमाणं [दस सुष्णा ] उप्पर्ण च सहस्सा कोटीणं सत्तरि लक्खा य२, एगं पुब्वं चुलसीए पुब्वसतसहस्सेहिं गुणितं से एगे तुडियंगे भवति, तस्स इमं परिमाणं पण्णरस सुण्णा य, तओ चउरो मुण्णं सन्त दो णव पंच ठब्वेज्जा ३, एवं चुलसीवीए सतसहस्सा गुणिवा सव्वठाणे कायव्वा, ततो तुडियादयो भवति, तेसि जहासंखं परिमाणं तुडिए सिं सुण्णा, तो छवि एगो सत्त अ सत्ता चउरो ट्वेज्जा ४ अडडंगे पणवीसं सुण्णा ततो चड दो चड नव एको एको दो अट्ठ एको चरो य ठवे ज्जा ५ अडडे ती सुण्णा तओ छ एको छ एक्को वि सुण्णं अट्ठ जब दो एक पण दिगं ठवेज्जा ६, अबरंगे पणतीसं सुण्णा, वओ च चड सत्त पण पण चड वि सुण्णं णव सुष्णं पण पात्र दो य उदेज्जा ७, पत्तालसिं सुण्णा तओ क णव च दो अट्ट सुण्णं एको एको णव अट्ट पण सत्त अड्डू सत्त च दो य ठवेनाहि अथवे य८ हूहूयंगे य पणचत्तालसिं सुण्णा, तओ च छ छ णव दो जव मुण्णं ति पण अट्ट च सत्त पंच एको दो अट्ट मुण्णं दो य ठवेज्जा ९, हूहूए पण्णासं सुण्णा, तभो छ सत्त सत्त एगो णव सुण्णं अड जब सं ... अत्र 'समय' शब्दात् आरभ्य शीर्षप्रहेलिका पर्यन्त 'काल'स्य वर्णनं ~58~ सम्यादयः शीर्षप्रहेलि कान्ताः ॥ ५४ ॥

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