Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 69
________________ आगम (४५) “अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) ....... मूल [१२४-१२६] / गाथा [१८-२३] ..... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र -२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति:: प्रत सूत्रांक [१२४१२६] गाथा % ||१८ २३|| श्रीअनु0असंभवी, संसारिणो जपन्यतो अन्योदविका गोपशमिकपरिणामिकभापत्रयोपतत्यान, तथापि भंगकरचनामानार्थत्वानमः, म्योरय- पणनामानि हारि.वृत्तासंभवी वेदितव्य इति, अबिरुद्धास्तु पंचदश एवं सानिपातिकभदास्त अत्रानधिकना अपि प्रदेशान्तरे उपयोगिन इनि सानिपातिकताम्यान्निद-14 श्यते-'उदइयख ओनसमिय परिणामियति गलिचरकवि । पययागणचि चोलयभाव नवसमे ॥६५॥ विदय तहेव सिद्धस्म । अविरलमनिवादित पमत हुँनि पन्नरस ॥ २॥ आंदविकतायोपशमिकपारणामिकमानिपानिक एकको गतिचतु केऽपि, तयथा-उदा त परदा खवसमिया इंदियाई परिणामिय जीव, जया खइयं समतं नदा ओदश्यम्बओवसमखझ्यपारिणामिकनिपन्नः सन्निपातिकः, को गतिचतुष्पु, तचथा-उदापनि रहार खओवसमियाई दियाई खइर्य समतं पारिणामिए जीवे, एवं तिर्यगादिवपि वाच्यं, तिर्यन्यपि आयिकसम्यग्दृष्टयः कृतभंगरूयाऽन्यथाऽनुपपवेरिति भावनी, नदभावे भाविकामाचे चशब्दात शेषश्त्रयभावे चौपशमिकेनापि चत्वार एव, उपशममात्रय गतिचतुष्यपि भावान 'ऊसरदेस दड्डेलब पविझाति वणश्वो पाप । इयमिछम्म अणुदए उवसमसम्म लाइ जीवो ॥१॥' अविशिष्योक्तत्वात , तथा 'वसामिय तु सम्मत् । ओ चा अकतिपुंजो अखवियमिनही रह सम्म ॥१॥ नित्य अणिव्यतिरेण विशिष्यवोक्तावान, अमिलाप: पूर्ववत , नवरं क्षायिकस यक्वस्थाने ओवशमिकसम्माचेनि वक्तव्य, एते चाटी भंगा: प्राक्तना. भत्तार इति द्वादश, उपशमयां एगो भङ्गस्तम्य मनुष्येष्वेव भावात् , अभिलाप: पूर्ववत् , नवरं मनुज्यविषय एव, केवलिनचैक एव-उद*इए मणुस्से सस्य समतं पारिणामिए जीवे, तथैव सिद्धम्स एक स्व-खश्य समन पारिणामिए जीये, एवमेते प्रयो भंगा: महिता: अविरुद्धसानिपातिकभेदाः पंचदश मति, कसं प्रसंगेन । से ते सनिवातिये नाम, योजना सर्वत्र कायो, से तं छ णामे, गतं पडनाम । ॥६५॥ 'से कि तं सत्त नामे' त्यादि (१२७-१२७ ) सप्तनाम्नि सप्त स्वराः प्रशपाः, तंजहा-'सज्जे' त्यादि (*२५-१२७), 'पजो रिषभो AC% दीप अनुक्रम [१५११६३] EXRAPE ~69~

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