Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४५)
“अनुयोगद्वार'- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:)
.............. मूलं [८६] | गाथा [८.............. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र -२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति::
श्रीअनुः हारि.वृत्ती
प्रत सूत्रांक [८६] गाथा ||८..||
CARE
॥३६॥
त्यादि, (८६-६३ ) इह ध्यादिस्कन्धारण्यादिस्कन्धतां विहाय पुनर्यावता कालेन त एव तथा भवतीत्यसावन्तरं, एगदवं आनुपूल्योआणुपुग्विदम्ब पड्कय जहण्णेणं-सव्वयोवतया एग समयंकाललक्खणं, कई, तिपदेसियादियाओ परमाणुमादी वित्तो ।
दिदीनामन्तरे समयं चिडिऊण पुणो तेण दुग्वेण विस्ससापओगाओ तदेव संजब्जइ, एवमेगं समय अंतरंति, उकासेणं-उकोसगतया अणत कालं, कह , ताओ चेव तिपदसियादियाओ सो चेव परमाणुमाई विउत्तो अण्णसु परमाणुब्धणुकायकोत्तरवृदया अनन्ताणुकावसानेषु | स्वस्थाने प्रतिभेदमनन्तव्यक्तिवत्स ठाणेम उकोसमेतराधिकारातो असई (उकोस) ठितीए अच्छिकण कालस्स अनन्तत्तणओ घंसणधोलगाए पुणोवि नियमेण चेव तेणं दवेणं पओगविस्ससाभावओ तहेव संजुज्जइति, एवमुक्कोसतो अर्णतं कालं अंतरं भवति, णाणादब्वाई पडुच्च णस्थि अंतरं, इह लोके सदैव तद्भावादिति भावना, अणाणुपुन्विचिंताए एग दव्वं पडुकच जहष्णेणं एग समयंति, कई?, एगो पर| माणू अण्णणं अणुमादिणा पदिऊण समयं चिंहिता विजात एवं एगसमयमन्तरं, कोसेणं असं कालं, कह', अणाणुपुब्बिदब्ध अण्णण अणाणुषविदव्वण अवत्तव्यगदवेणं आणपुग्विदध्वेण वा संजुत्तं उकोमद्वितियमसंखेजकालनियमितलक्खणं होऊण ठितिअन्ते तओ भिण्णो नियमा परमाणू चव भवति, अण्णवाणवेक्वत्तणओ, एवं उकासेण असंखज्जकालंति, एल्थ चोदगो भणति-णणु अणतपदेसगाणुपुब्बीदव्वसेजुत्तं खंडखंडेहि विचडिकण ठाणुकादिभावमपरित्यजेदवान्यान्यस्कन्धसम्बन्धस्थित्यपेक्षयाऽस्यानन्तकालमेबान्तरं
॥३६॥ कम्मान भवति इति, अत्रोच्यते, परमसंयोगस्थितेरप्यसंख्येवकालादूर्ध्वमभावादणुखेन तस्य संयुक्तवादणुत्वत एव वियोगभावादिति, कथमिदं शायत इति चेदुच्यते, आचार्यप्रवृत्तेः, तथाहि-इदमेव सूत्रं ज्ञापकमित्यलं घसूर्वेति । 'णाणादब्वाई' तु पूर्ववत्, अवत्सव्वगचिंताए एग दव्वं पडुरुच जण्यणं एग समय एवं-दुपरमाणुखंघो विउरिजऊण पंग समय ठाऊण पुणो संजुञ्जइ, अण्णेण वा आणुपुवादिणा
दीप अनुक्रम [९७]
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