Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 48
________________ आगम (४५) "अनुयोगद्वार"- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः ) .......... मूलं [९८-१००] | गाथा [१०] ........ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र -२] "अनुयोगद्वार' मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति:: प्रत सूत्रांक [९८१००] गाथा ||१०|| ॥४४॥ श्रीअनु: जेट्टाणुजहो जथा चटकस्स एको, अतो पर सव्वे जेट्ठाणु जेट्टा भाणितब्वा, पतेर्सि अण्णतेरे ठविते 'पुरा' ति अमाओ उवरिलतासरिसे क्षेत्रानुष्हारत्ताला ठवेजा, जेहादिअकठवणतो जे एगादिया सेसहाणा तेसु जे अट्ठविया सेसगा अंका से पुषकमेण ठवेग्जा, जस्म अणंतरो परंपरो वा पुया काव्योदय: अंको स पुज्यं ठविज्जते पुख्वकमो भण्णतीत्यर्थः, तत्थ विहं पदार्ण इमा ठवगा, १२३-२१३-१३२-३१२-२३१-३२१ अहवा अणाणुपुवीणं परिमाणजाणणत्यो सुहविष्णेयो इमो उवाओ धम्मादिए चेव छप्पदे पडुच्च दंतिम्जइ-गगादिपसु परोप्परब्भासेण सत्त सता वीमुत्तरा भवंति, एकोण दुगो गुणिओ दो दो तिग छ छ चक चडब्बीस चवीस पंच वीसुत्तरं सतं वीमुत्तरं सतं छकगाण सत्त सता वीमुत्तरा, पते पढमंतिमहीणा अपाणुपवीण सत्त सता अट्ठारमत्ता हवंति, अगेण उवातो भणिओ व 'पुवाणुपुची हेटा' इत्यादिना, एवमन्येऽपि भूयांस एवोपाया विद्यन्ते न च तैरप्रस्तुतैरिहाधिकार इति न दयन्ते, से तं अगाणुपुब्बीति निगमनं, 'अहवे 'त्यादि (९८७७) अहवेति प्रकारान्तरदर्शनार्थः, औपनिधिकी द्रव्यानुपूर्वी त्रिविधा प्राप्ता, तद्यथा- पूर्वानुपूर्वी ' स्यादि सूत्रसिद्ध यावनिगमन| मिति, नवरमाह चोदक:-अथ कस्मात्सुद्गलास्तिकाये एव त्रिविधा दर्शिता, न शेषास्तिकायेषु धादिष्विति, अत्रोच्यते, असंभवाद्, असंभवश्व धमाधमाकाशानां प्रत्येकमेकद्रव्यत्वादेकाव्येषु च पूर्बाद्ययोगात् जीवास्तिकायेऽपि सर्वजीवानामेव तुल्यप्रदेशत्वादेकाोकोत्तरवृद्धभावादयो न इति, अद्धासमयस्त्वेकत्वादयोग इत्यर्क प्रसङ्गन, प्रस्तुमः प्रकृतं, गवा द्रव्यानुपूर्वी । साम्प्रतं क्षेत्रानुपूर्वी प्रतिपाद्यते, तत्रेदं सूत्र-' से किं ते खचाणुपुब्बी ' ( ९९-७८ ) द्रव्यावगाहोपलक्षित क्षेत्रमेव क्षेत्रानुपूर्वी, सा द्विविधा प्रक| नेत्याचत्र यथा द्रव्यानुपूर्वी तथैवाक्षरगमनिका कार्या, विशेष तु वक्ष्यामः, 'तिपदेसोगाढे आणुपुग्वि' ति त्रिप्रदेशावगाढः H ॥१४॥ | व्यणुकादिस्कन्धः अवगायावगाहकयोरन्योऽन्यसिद्धरभावेऽध्याकाशस्यावगाहलवणत्वात् क्षेत्रानुपूळधिकारात् क्षेत्रप्राधान्यात् क्षेत्रानुपूर्वी RANCCCC दीप अनुक्रम [१११११५] ~48-~

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