Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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आगम
(४५)
"अनुयोगद्वार - चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्तिः )
............. मूलं [९४-९५] / गाथा [९] .......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र -२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति::
प्रत सूत्रांक [९४-९५] गाथा
|९||
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श्राअनुासमोतारे' त्यादि (९४-७१) सूत्रीसा, यावत् 'संगहस्ल आणुपुतिबदब्बाई आणविवेहि समोतरंति' तज्जाती वतन्ते, आनुपूर्वी-1 संग्रहणा हारि.वृत्ती
स्वेन भवन्तीत्यय:, एवमनानुपूर्ववक्तव्यकद्रव्यचिन्तायामपि भावना कार्या, पाठान्तरं वा 'सट्ठाणे समोतरति' स्वस्थानं तस्मिन् समवतरं-टा ॥४०॥ तीति, अत्राह-जं सहाणे समोतरतीति भगह, किंतं आतभावो सहाण परदब्बं वा समभावपरिणामत्तगो सट्टाणं ?, जदि आतभावो सट्ठाणं
तो आतभावे ठितत्तणतो समोतारो भवति, अह परदव्यं तो आणुपुबिदब्बस्स अणाणुपुब्विअवतन्वयदव्याषि मुत्तित्तषणादिपहि समभावतणतो सट्ठाण भविस्पति, एवं चोदि गुरू भगति-सम्बदम्वा आतभावेत वणिजमाणा आतभावसमोतारे भवंति, जतो जीवदव्य जीवभाबेमु समोतरिजिइ णोऽजीवभावसु, अजीपदपि अजीवभावे न जीवभावप्रित्यर्थः परयपि समभावविसेसादिसामनत्तगओ सहाणं पेप्पइति ण दोसो, इह पुग अधिकारे आणुपुस्विभाबवितेसत्तमओ आणुपुबिदवपक्खे समोतरतित्ति सट्ठाणं भणित, एवं अणाणुपुब्विअवत्तब्वेवि सहाणे समोतारो भाणियबो इति, 'सेत 'मित्यादि, निगमने । ' से कितं अणु गमे, अणुगमे अट्ठविहे पण्ण ते, तंजहा-सन्तपद' गाहा (१९-७१) णवरं अप्पावई णस्थि' चि (९५-७१) विशेषत इयं च नयान्तराभित्रायतो व्याख्यातेव, य एवंह विशेषोऽसावेव प्रतिद्वारं प्रतिपाद्यत इति, तत्र 'संगहस्से' त्यादि, अन्यसिद्धमेव, बावन्नियमा एको रासी, एत्य सुत्तुधारणसमणतरमेव आह चोदकः--णणु दयपमाणे पुढे अतिलिहामुत्तरं, जो गको रासित्ति पमाणं कहियं, जो बहणं सालिबीयाणं एको रासी भण्णाति, एवं बहूर्ण आणुपब्बिदब्वाणं एको रामी भत्रिस्पति, बहू पुग दया पडिजिज्ञतब्बा, आचार्य आह-एकालिप्रहणण बहुसुवि ४ ।१० आणुपुत्रिवेसु एवं चेव आणुमुधिभा सेति, जहा भूने कठीण नुतनं, अवा जहा बहवो परमाणवो संवत्तभावपरिणता एगखंधो भण्णति, एवं बहुआणुपुब्बिदव्या आणुपुब्विभावपरिणवत्तणतो एगाणुपुश्वित्तं पगत्तणओ एगो रासीति भणितं न दोसो, 'संगहस्स आणु
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दीप अनुक्रम [१०५१०८]
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