Book Title: Aagam 45 Anuyogdwaar Haaribhadriyaa Vrutti
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 33
________________ आगम (४५) “अनुयोगद्वार'- चूलिकासूत्र-२ (मूलं+वृत्ति:) .......... मूलं [६८-६९] / गाथा [७......... मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित..आगमसूत्र - [४५], चूलिकासूत्र -२] "अनुयोगद्वार" मूलं एवं हरिभद्रसूरिजी-रचिता वृत्ति:: श्रीअनु। हारि.वृत्ती ला अप्रशस्त भावोप प्रत सूत्रांक [६८-६९] गाथा ||७..| ॥ २९ ॥ पक्रम्यन्ते-योग्यतामापाचन्ते आदिशब्दाद्विनाशकारणगजेन्द्रबंधादिपरिग्रहः 'सेत' मित्यादि निगमनं । “से कित' मित्यादि, (६८-४८) कालस्य वर्तनादिरूपत्वान् द्रव्योपक्रम एवोपचारात् कालोपक्रम इति, चंद्रोपरागादिपरिशानलक्षणो वा, यद्वा जण' मित्यादि, यनालिकाविभिः काल उपक्रम्यते--ज्ञानयोग्यतामापाचते, नालिका-पटिका, आदिशब्दात् प्रहरादिपरिपहा, 'सेत' मित्यादि निगमनवाक्य, भावोपकमो द्विधा-आगमतो नोआगमतश्च, आगमतो ज्ञाता उपयुक्तः, नोऽआगमतस्तु प्रशस्तोऽप्रशस्तश्चेति, तत्राप्रशस्तो डोहिणिगणिकामा त्यादीनां, एखोदाहरणानि-एगा मरुगिणी, सा पितेति-किह धूताओ सुदिताओ होजाति ,तो जेहिता धूया सिक्वाविया, जहा-वरंती मन्थए पापण्हीए आणि जाति, वाए आहतो, सो तुट्ठो पार्न मरिनुमारखो, ण दुक्खावियत्ति, तीए मायाए कहियं, ताए भणिय-जं करेहि तं करेहि, माग एस किंचि तुज्म अवर सतिति, वितिया सिक्वाविया, वीएवि आइओ, सो प्रबित्ता वसंतो, मा भणति--तुमंपि बीसस्था विहर, णवरं खणओ एसोति, तइया सिक्वविया, वीएवि आहओ, सो हो, सेण ददं पिहिया धाडिया य, तं अकुलपुत्ती जा एवं करेसि, तीर मायाण &ा कहियं, पच्छा कहवि अणुगनिओ-अम्ह एस कुलधम्मोति, पूया व भणिया--जहा देवयस्स पट्टिाजासित्ति, मा बहिहिति । एगम्मि पयरे चउसट्ठिकलाकुसहा गणिया, तीए परभावोपक्रमणनिमितं रतिघरम्मि सब्याओ पगतीओ नियनियवाबारं करेमाणीओ आलिहावियाओ, तत्य य जो जो बदमाई एइ सो सो नियं२ सिप्पं पसंसति, णायभावो न मुअणुयत्तो भवति, अणुयत्तिओ य यारं गाहिओ खवं खद्ध दव्यजातं वितरेति, एसवि अपसत्थो भावोवकमो । गगम्मि पयरे कोई राया अस्सवाणियाए सह अमकचेण णिमाओ, तत्थ य से अस्सेगऽवाघेणं खलिणे काइया बोमिरिया, खारं बद्ध, तं च पुडविधिरसणओ तहड़ियं चैव रण्या पडिनियसमाणेण सुइरं निझाइयं, चिनियं चाणेण--दद तलागं सोहर्ण हवइत्ति, उण बुलं, अमच्घेणं इगितागारकुसलेण रावाणमणापुत्रिय महासरं खणावियं चेव, पालीए आरामो दीप अनुक्रम [७८-७९] का॥२९॥ ~33.

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