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युगवीर-निबन्धावलो हितैषियोका यह मुख्य कर्तव्य है कि वे अपने नेतामोको उनके कार्योंमें पूर्ण सहयोग प्रदान करें और ऐसा कोई भी कार्य न करे जिससे नेताप्रोका कार्य कठिन तथा जटिल बने। इसके लिये सबसे बडा प्रयत्न देशमे धर्मान्धता अथवा मजहबी पागलपनको दूर करके पारस्परिक प्रेम, सद्भाव, विश्वास और सहयोगकी भावनाप्रोको उत्पन्न करनेका है । इसीसे अन्तरङ्ग शत्रुप्रोका नाश होकर देशमे शान्ति एव सुव्यवस्थाकी प्रतिष्ठा हो सकेगी और मिली हुई स्वतत्रता स्थिर रह सकेगी" इत्यादि । यह लेख सन् १९४७ के मार्चअप्रैल मासमे स्वातत्र्य-प्राप्तिकी पृष्ठभूमिमे लिखा गया था । हमारी गत पन्द्रह-सोलह वर्षकी यात्राके प्रतिकूल इधर हए साम्प्रदायिक झगडो और अब चीनी अाक्रमणके प्रकाशमे जान पडता है, हम पून उसी मजिल पर पा खडे हए है जहाँसे उस समय चले थे। ___ इसी प्रकार प्रथम लेख 'सुधारका मूलमत्र' ही ले लीजिये जो सन् १९१७ मे लिखा गया था। वहाँ पढिये__'यदि आप यह चाहते है कि हिन्दी भाषाका भारतवर्षमे सर्वत्र प्रचार हो जाय, और आप उसे राष्ट्रभाषा बनानेकी इच्छा रखते हैं तो आप हिन्दी साहित्यका जी-जानसे प्रचार कीजिये । स्वय हिन्दी लिखिये, हिन्दी बोलिये, हिन्दीमे पत्र-व्यवहार, हिन्दीमे कारोबार
और हिन्दीमे वार्तालाप कीजिये । हिन्दी पत्रो और पुस्तकोको पढिये, उन्हे दूसरोको पढनेके लिये दीजिये, अथवा पढनेको प्रेरणा कीजिये । हिन्दीमे लेख लिखिये, हिन्दीमे पुस्तकें निर्माण कीजिये, हिन्दीमे भाषरण दीजिये, और यह सब दूसरोसे भी कराइये। दृढताके साथ ऐसा यत्न कीजिये कि हिन्दीमे सब विषयो पर उत्तमोतम ग्रन्थ लिखे जाय । हिन्दी लेखकोका उत्साह बढाइये । उन्हें लेखो तथा पुस्तकोंके तैयार करनेके लिये अनेक प्रकारकी सामग्रीकी सहायता दीजिये, और तरह-तरहके लेखो, चित्रो, व्याख्यानो,