Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ नये युगको झलक हकी भी लोग बडी उत्सुकतासे प्रतीक्षा कर रहे थे। किन्तु जहां तक मुझे ज्ञात है, उनके लेखोका कोई दूसरा सग्रह अब तक प्रकाशित नहीं हो पाया। श्रेयस्कर कार्यमें अनेक विघ्न आते हैं । इधर कई दिनोंसे मुख्तारजीके वृद्धत्वको देखते हुए यह आशा क्षीण होती जा रही थी कि अब उन्हींके कर-कमलोंसे सग्रहीत उनका कोई अन्य लेख-सग्रह भी हमे प्राप्त हो सकेगा। इसे प्रतदेवीकी महती कृपा ही समझना चाहिये कि उसने मुख्तारजीको यह प्रेरणा दी और बल प्रदान किया कि वे अपना एक और लेख-मग्रह ज्ञानोपासकोको प्रदान करे । इसीका परिणाम यह मुख्तारजीका लेख-सग्रह उपस्थित है। प्रस्तुत खडमे मुख्तारजीके उन ४१ लेखोका मग्रह है जो सन् १६८७ और १९५२ के बीच ४५ वर्षोमे भिन्न-भिन्न समय पर लिखे गये थे, और जैनगजट, जनहितैषी, सत्योदय, अनेकान्त आदि पत्रपत्रिकाप्रोमें प्रकाशित हुए थे । यह समस्त काल भारतीय राजनीति, समाज व सस्कृतिके क्षेत्रमे असाधारण उत्क्रान्ति-पूरण रहा है । विशेषत देशके स्वतत्र होनेसे लगाकर गत १५-१६ वर्षोंमे तो यहांकी गतिविधियो व विचारोमे आकाश-पातालका अन्तर पड गया है । अतएव आश्चर्य नही जो प्रस्तुत लेखोकी अनेक बाते अब कालातीत हो गई हो । किन्तु पाश्चर्य तो इस बातका है कि यहाँ कही गई अनेक बाते ऐसी हैं जो मानो वर्तमान स्थितिको ही दृष्टिमे रखकर लिखी गई हो। उदाहरणार्थ 'भारतकी स्वतत्रता, उसका भड़ा और कर्तव्य' (२६) शीर्षक लेख देखिये जहां कहा गया है कि "भारतकी स्वतत्रताको स्थिर-सुरक्षित रखने और उसके भविष्यको समुज्ज्वल बनानेके लिये इस समय जनता और भारत

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