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विविध पूजन संग्रह
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प्रियङ्ग-वत्स-कङ्केलीरसालादितरूद्भवैः । पल्लबैः पत्रभल्लातै-रेलचीतजसत्फलैः ॥२॥ (अनु.) विष्णुक्रान्ताहिप्रवाल-लवङ्गादिभिरष्टभिः ।। मूलाष्टकैस्तथा द्रव्यैः, सदौषधिविमिश्रितैः ॥३॥ (अनु.) सुगन्धद्रव्यसन्दोहा-मोदमत्तालिसंकुलैः । विदधेऽर्हन्महास्नात्रं, शुभसन्ततिसूचकम् ॥४॥ (अनु.)
ॐ हाँ ही परमार्हते परमेश्वराय गन्ध-पुष्पादि-संमिश्र-प्रियंग्वादि-सौंषधि-चूर्ण-संयुत-जलेन स्नापयामीति स्वाहा ।
॥ इति अष्टम स्नात्रम् ॥ आठ स्नात्र करने के पश्चात् मुद्राओं के द्वारा परमात्मा का आह्वान करना । यह क्रिया गुरु भगवंत हो तो उनके द्वारा की जाती है नहीं तो विधिकारक करते हैं। तीन प्रकार की मुद्राओं के द्वारा मंत्र बोलते हुए परमात्मा का आह्वान किया जाता है।
श्री अठारह अभिषेक
॥८३ ॥
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