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विविध पूजन संग्रह
।। १४६ ।।
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"दैत्यों, देवेन्द्रों, यक्षों, एवं सिद्धो" के द्वारा अह अहमिका पूर्वक तेरे देह जैसी कांति को प्राप्त करने के लिये तीन संध्या में भक्ति पूर्वक नमन किया हो । ऐसी पवित्र चरणों वाली आं इं उं तं अ आ ई ऐसे स्वर युक्त स्वर सहित बीस अक्षरों से युक्त पापसमूह को नष्ट करने वाली उपरोक्त बीजाक्षरो के जाप के प्रभाव से समृद्ध होने वाली है देवी ! पद्मावती हमारे पापों का नाश कर । मैं श्वेत स्वच्छ अक्षत (चावल) से तेरी पूजा कर रहा हूँ ।
फिर निम्न मंत्र बोल कर १०८ आहूति अक्षत की देना । "ॐ ह्रीं श्रीं पद्मावत्यै अक्षतं समर्पयामि स्वाहा "
(४) पुष्प-पूजा
" हा पक्षी बीज गर्भे, सुरवर रमणीऽचर्चिते नेक रूपे । कोपं वं झं विधेयं, धरित वर करे, योगिनां योग-मार्गे ॥ हं हंसः स्वाङ्गजैश्च, प्रतिदिन नमिते, प्रस्तुताऽपाप-पट्टे । दैत्येद्वैर्थ्यायमाने ! विमल-सलिलजैस्त्वां यजे देवि पद्मे ॥ "
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श्री पार्श्व
पद्मावती
महापूजन विधि
।। १४६ ।।
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