Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

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Page 244
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि 11 94 11 Jain Education International (९) पछी तांबानी एक माटली धोई धूपी ते मध्ये केसर सुखडनो साथीयो करी ते उपर नीचेनो मंत्र लखवो :- ॐ ह्रीं श्रीं सर्वोपद्रवान्नाशय नाशय स्वाहा । ए मंत्र लखी तेना कंठे ग्रीवासूत्र, मींढळ, मरडाशींगी, समूल डाभ बांधीए । तेमां रूपीयो एक तथा पंचरत्ननी पोटली मूकीए, तेनो मंत्र :- ॐ ह्रीँ श्रीँ, नानारत्नौघसंयुतं, सुगन्धि- पुष्पाधिवासितं नीरम् । पतताद्विचित्रवर्णं मन्त्राढ्यं स्थापनाबिम्बे ॥१ ॥ स्वाहा । ए मंत्र वडे मंत्री पंचरल मूकीए । पछी ॐ ह्रीँ ठः ठः ठः स्वाहा । ए मंत्रे सात वार मंत्री ते माटली प्रभुजीने जमणे पासे स्थापीए । वासपुष्पे पूजीए । (१०) पछी पंचामृत- घृत १, दुध २, दहीं ३, साकर ४, पाणी ५ - ए पांच एकठां करी - ॐ ह्रीँ, जिनबिम्बोपरि निपतद् घृतदधिदुग्धादि - द्रव्यपरिपूतम् । गन्धोदकसम्मिश्रं पञ्चसुधं हरतु दुरितानि ॥१॥ स्वाहा । ए मंत्रे त्रण वार मंत्री माटली | मध्ये पंचामृत रेडीए । पछी तेमां तीर्थजळ तथा कूवानां पाणी नांखीए. तेनो मंत्र : ॐ ह्रीँ भूः (भः ) जलधिनदीद्रहकुण्डेषु यानि तीर्थोदकानि शुद्धानि । तैर्मन्त्रसंस्कृतैरिह, बिम्बं स्नपयामि शुद्ध्यर्थम् ॥ १॥ स्वाहा । ए मंत्रे सात वार मंत्री माटली मध्ये जळ रेडीए । पछी For Personal & Private Use Only श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ।। ७५ ।। www.jainelibrary.org

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