Book Title: Vividh Pujan Sangraha
Author(s): Champaklal C Shah, Viral C Shah, 
Publisher: Anshiben Fatehchandji Surana Parivar

View full book text
Previous | Next

Page 243
________________ श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नात्रादि विधि ॥७४ ॥ भगवाननी प्रतिमामां श्री शान्तिनाथ भगवानी कल्पना नीचे प्रमाणे मंत्रपूर्वक करवी. ॐ नमोऽर्हद्भ्यस्तीर्थकरेभ्यो जिनेभ्यो ऽनाद्यनन्तेभ्यः समबलेभ्यः समतेभ्यः समप्रभावेभ्यः समकेवलेभ्यः समतत्त्वोपदेशेभ्यः समपूजितेभ्यः समकल्पनेभ्यः समस्ततीर्थकंराणां पंचदशकर्मभूमिभवस्तीर्थकरो यो यत्राराध्यते सोऽत्र प्रतिष्ठाया सन्निहितोऽस्तु । आ मंत्र वडे त्रण वार मंत्रीने जिनप्रतिमामां बीजा तीर्थंकर भगवाननी कल्पना (स्थापना) करवामां आवे छे. (८) पछी कोरा शरावलामां सधवा स्त्री पासे गोघृत पूरावीए. तेनो मंत्र - ॐ घृतमायुर्वृद्धिकरं भवति परं जैनदृष्टिसम्पर्कात् । तत्संयुतः प्रदीपः, पातु सदा भावदुःखेभ्यः ॥१॥ स्वाहा ।आ मंत्र त्रण वार भणी धी पूरीए । पछी दीप प्रगट करीए । तेनो मंत्र :- ॐ अर्ह, पञ्चज्ञानमहाज्योति-र्मयाय ध्वान्तघातिने । द्योतनाय प्रतिमाया, दीपो भूयात् सदाऽऽर्हतः ॥१॥ ए मंत्र त्रण वार बोली दीप प्रगटाववो । श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि ॥७४॥ Jan Education international For Personal & Private Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 241 242 243 244 245 246 247 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266