________________
श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
॥७९॥
(१२) अष्टप्रकारी पूजा करी, पछी प्रभुने जमणे पडखे श्रीशान्तिदेवीनो कुंभ स्थापीए (कुंभस्थापननी पेठे) पछी ग्रहस्थापन, दिक्पालस्थापन तथा नंद्यावर्तसाथिया प्रमुख अष्टमंगळनी स्थापना करवी, पछी दशदिक्पाल अने ग्रहोने पवित्र बलिबाकळा देवा । (दिक्पाल बृहद् आह्वान विधि प्रमाणे जुओ !)
(१३) प्रथम शान्तिस्नात्र भणावे-तेमां सोनावाणी १, फूल २,कंकु ३,चंदन ४, हाथमध्ये राखी वाजते-गाजते 'ॐक्षा क्षेत्रपालाय नमः ।' ए प्रमाणे कही पूर्वदिशा तरफ उछाळवू । ॐ ही दिक्पालाय नमः । ए प्रमाणे कही दक्षिण दिशा तरफ उछाळवू । ॐ ह्रीं षोडशमहादेवीभ्यो नमः । ए प्रमाणे कही पश्चिम दिशा तरफ उछाळवू । ॐ हीं जिनशासनदेवीभ्यो नमः । ए प्रमाणे कही उत्तर दिशा तरफ उछाळवू । आ प्रमाणे क्षेत्रपालादिक पूजीए।
(१४) पछी चार कळश सोनावाणी पाणीए क्षीरोदक भरी, पंचामृते शान्तिघोषणापूर्वक (उच्चरते) स्नात्र करीए । गाथा यथा :रोगशोकादिभिर्दोषै-रजिताय जितारये । नमः श्रीशान्तये तस्मै, विहिताशिवशान्तये ॥१॥
श्री अष्टोत्तरी व शान्तिस्नानादि विधि
॥७९॥
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.ininelibrary.org